इस साल भारत में अब तक, यानी फरवरी के दूसरे सप्ताह तक स्वाइन फ्लू (swine flu) के 6700 से अधिक मामले प्रकाश में आए, जिसमें 230 से अधिक मौतों के साथ स्थिति की भयावहता बनी हुई है। स्वाइन फ्लू (swine flu) क्या है, यह कैसे फैलता है, इसके लक्षण और उपचार क्या हैं और कैसे इससे बचा जा सकता है इस बारे में हमें जानना चाहिए और लोगों को भी जागरुक करना चाहिए। सजग और समझदार समाज बीमारियों के इलाज पर ध्यान देने के साथ-साथ बीमारियों को समझने और उनसे बचाव करने पर भी बराबर का ध्यान देता है।
स्वाइन फ्लू (Swine flu) क्या है?
स्वाइन फ्लू (Swine flu) रोग H1N1 वायरस के कारण होता है। दरअसल यह इन्फ्लुएंजा का ही एक नया प्रकार है जो समान्य इन्फ्लुएंजा से अधिक खतरनाक और सही इलाज के अभाव में जानलेवा हो जाता है। मूलतः यह वायरस सूअरों और चिड़ियों में पाया गया था। 1918 में पहली बार जब सूअरों और मनुष्य के एक साथ इस इस वायरस से से संक्रमित होने की बात सामने आई तबसे इसे स्वाइन (सूअर) फ्लू कहा जाने लगा। 2009 में यूरोप और अमेरिकी देशों में इसके प्रकोप से लोगों की मृत्यु होने पर इसे pandemic यानी विश्वव्यापी घोषित किया गया। जरूरी नहीं कि यह सूअरों से फैले। आज यह वायरस मनुष्य से मनुष्य में ही फैल रहा है। स्वाइन फ्लू के वायरस भारत में बाहर से आए। 2009 में अमेरिकी देशों में इसके फैलने के तुरंत बाद 13 मई को भारत में हैदराबाद एयरपोर्ट पर इसका पहला मामला सामने आया था। देश में इस रोग से पहली मृत्यु का मामला उसी साल महाराष्ट्र के पुणे में दर्ज हुआ।
स्वाइन फ्लू कैसे फैलता है?
दोस्तो, जैसा कि आपने ऊपर जाना आम तौर पर यह मनुष्य से मनुष्य में फैलता है। चूंकि यह हमारे श्वसन तंत्र को संक्रमित करता है, तो इसका फैलना मुख्य रूप से मनुष्य के लार के छींटों के जरिए होता है। संक्रमित व्यक्ति के खांसी या छींक के छीटें इसके फैलने के प्रमुख कारक होते हैं। निरोग आदमी के शरीर में ये सांस के जरिए या मुंह के जरिए पहुंचते हैं या फिर नाक, मुंह और आंखों को संक्रमित करते हैं। यह सच है swine flu सूअर का मांस खाने से नहीं फैलता, लेकिन यह भी सच है कि सूअरों के संपर्क में रहने वाले लोगों- जैसे सूअर पालकों, सूअर फार्म के आस-आप रहने वाले लोगों और सूअरों के साथ काम करने वाले वेट्रिनरी डॉक्टरों में इसके फैलने का खतरा अधिक होता है। स्वाइन फ्लू किसी भी उम्र के व्यक्ति को अपनी चपेट में ले सकता है, लेकिन 5 से कम उम्र के बच्चों और 65 साल से अधिक उम्र के लोगों के इसकी चपेट में आने की संभावना अधिक होती है।
लक्षण (symptoms of swine flu)
स्वाइन फ्लू के लक्षण सामान्य इन्फ्लुएंजा की तरह ही होते हैं। स्वाइन फ्लू वायरस मनुष्य के श्वसन तंत्र को प्रभावित करता है। वायरस से संक्रमण होने के 24 से 72 घंटों में इसके लक्षण दिखाई पड़ते हैं। प्रमुख लक्षण हैं-
बुखार
ठंड लगना
बदन दर्द
सिर दर्द
नाक से पानी आना
गले की खराश
खांसी
आंखों में जलन और पानी आना
कमजोरी
भूख न लगना
दस्त और उबकाई (कुछ रोगियों में)
जरूरी नहीं कि स्वाइन फ्लू के हर रोगी में इनमें से सभी लक्षण पाए जाएं, और न ही यह जरूरी है लक्षणों की गंभीरता भी सबमे एक समान हो।
याद रखें, इन लक्षणों के दिखाई पड़ने मात्र से स्वाइन फ्लू की दहशत में न पड़ें, लेकिन डॉक्टर की सलाह जरूर लें।
स्वाइन फ्लू में उपचार और देखभाल (treatment and care in swine flu)
स्वाइन फ्लू से लड़ने के लिए हमारे पास जो सबसे कारगर और सुलभ उपाय है वह है immune power बढ़ाना। वैसे, Oseltamivir (Tamiflu), Peramivir (Rapivab), Zanamivir (Relenza), Baloxavir (Xofluza) जैसी कुछ दवाइयां हैं, जिन्हें डॉक्टर इस रोग के लक्षणों और उनसे होने वाली तकलीफों को कम करने के लिए प्रिस्क्राइब करते हैं, लेकिन यह रोग का मुकम्मल निदान नहीं है। जैसा कि आप जानते हैं, यह वायरस के कारण होता है इसलिए एंटीबायोटिक्स का इसपर कोई असर नहीं होता। आम तौर पर वायरस मानव शरीर की अपनी ही प्रतिरोधी शक्ति यानी immune power से ही पराजित होते हैं। इसके लिए जरूरी है कि रोगी का इम्यून सिस्टम का मजबूत होना। दोस्तो, याद रखिए, वायरस से होने वाले रोगों की कोई दवा नहीं होती। रोगी की उचित देखभाल, सही परहेज, सही पोषण और इम्यून शक्ति बढ़ाने वाली कुदरती उपायों के जरिए ही इससे निबटा जा सकता है। स्वाइन फ्लू से बचाव के टीके (swine flu vaccine) उपलब्ध हैं।
(i) आराम और खान-पान
सामान्य इन्फ्लुएंजा की तरह ही, लक्षण दिखाई पड़ते ही रोगी को भरपूर आराम करना चाहिए, खूब सारा पानी पीना चाहिए। खाना और खाने के पैटर्न में इस तरह बदलाव करना चाहिए ताकि डाइजेशन के लिए शरीर को अधिक मिहनत न करता पड़े और सारा ऊर्जा इम्यूनिटी विकसित करने में खर्च हो। इस समय शरीर को अधिक कार्बोहाइड्रेट, फैट या प्रोटीन वाले आहार की बजाए ऐसे आहार चाहिए होते हैं जो विटामिन और मिनरल से भरपूर हों। तले-भुने, भारी और मांसाहारी भोजन और बाजार के खाने से बिल्कुल परहेज रखना चाहिए। चाय-काफी, शराब, धूमपान जैसी नशीली चीजों के प्रयोग तो बिल्कुल नहीं करना चाहिए। अक्सर स्वाइन फ्लू के मामले इन्हीं लापरवाहियों की वजह से बिगड़ जाते हैं। ताजे फल और सब्जियां, सूप, फलों के रस जैसे कुदरती आहार लेना चाहिए। इनसे शरीर को भरपूर विटामिन और मिनरल मिल जाते हैं। आंवला, नींबू, नारंगी, कच्चे नारियल का पानी, ताजे गन्ने का रस भरपूर और नियमित लेना चाहिए। इनमें भरपूर एंटीऑक्सीडेंट (antioxidants) और शरीर की प्रतिरोधकता (immunity) बढ़ाने वाली खूबियां होती हैं। रोगी को चाय-काफी की जगह पुदीना, तुलसी, दालचीनी, अदरक, काली मिर्च आदि के साथ बनी ग्रीन टी दें।
(ii) आयुर्वेदिक/घरेलू उपाय
भारतीय घरों में आसानी से उपलब्ध तुलसी, नीम, गिलोय, पुदीना, हल्दी, लहसुन, एलोवेरा, कपूर जैसी घरेलू चीजें आयुर्वेद की खूबियों से भरपूर होती हैं। ऐलोपैथिक दवाओं के आगे लंबे समय से इनके महत्व को अनदेखा किया गया है। हजारों साल से भारतीय घरों की जीवनशैली का हिस्सा रही ये अद्भुत चीजों का लोहा अब आधुनिक मेडिकल साइंस भी मानने लगा है।
तुलसी- तुलसी के पत्ते कच्चे चबाकर खाए जा सकते हैं। चाहें तो अदरख, काली मिर्च, हल्दी, पुदीने के साथ इसका काढ़ा बनाकर पिया जा सकता है। इसमें गाय का घी लिया जा सकता है। रोगी की पसंद के हिसाब से इसे गुड़ के साथ या नमक के साथ लिया जा सकता है।
नीम- नीम की कोमल पत्तियों को यूं ही चबाकर भी खाया जा सकता है। पत्तियों को उबाल कर छ्ना हुआ पानी पिएं।
गिलोय- गिलोय के जीवित तनों के छोटे-छोटे टुकड़े कर खरल या मिक्सी में कूट लें। रात भर पानी में भिंगो लें। सुबह उसी पानी में सारे टुकड़ों को मसल लें और छानकर पिएं। गिलोय के जीवित तने उपलब्ध न होने पर। आयुर्वेदिक दुकान से इसके पाउडर लें और उबाल कर छान कर पिएं। संभव है आपको बोतलबंद तैयार रस भी मिल जाए।
एलोवेरा या ग्वार पाठा- इस गूदे निकालकर खाएं। मसलकर रस भी निकाला जा सकता है। पौधे उपलब्ध न हों तो बाजार से इसका बोतल बंद अर्क या जेल खरीदा जा सकता है।
लहसुन– इसे कच्चा खाना चाहिए। दो कलियां चाबाकर पानी पी लें।
कपूर- रोगी के कमरे में दिन में कई बार कपूर जलाएं। दिए के तेल में या घी में कपूर के चूर्ण मिलाकर जला सकते हैं। किसी भी तरह से कपूर का वाष्प रोगी की सांस में जाना चाहिए। कभी-कभी कपूर की बहुत सूक्ष्म मात्रा का सेवन भी किया जा सकता है। लेकिन ध्यान रहे यह मात्रा सूक्ष्म ही हो।
इन सबके साथ जरूर है रोगी तनाव मुक्त माहौल में पर्याप्त आराम करे। उसे भरपूर नींद लेनी चाहिए। याद रखें, नींद को सभी बीमारियों की आधी दवा कहा गया है। चूंकि स्वाइन फ्लू से श्वसन तंत्र प्रभावित होता है, इसलिए रोगी की नाक बंद हो सकती है। बेचैनी के साथ नाक से पानी आ सकता है। ऐसे में प्राणायाम मुश्किल होगा, लेकिन जहां तक हो सके गहरी सांस लेने की कोशिश करनी चाहिए।
(iii) एक्यूप्रेशर (accupressure)
शरीर के कुछ खास बिंदुओं को दबाकर रोगों का इलाज करने का यह तरीका आज एक आसान और आत्मनिर्भर alternate therapy के रूप में काफी लोकप्रिय हो रहा है। यह मूलतः शरीर की ऊर्जा की मदद से ही शरीर के अंगों को स्वस्थ करने का उपाय है। यह विधि उन रोगों के लिए खास तौर पर उपयोगी है जहां दवाओं के जरिए मुकम्मल इलाज की संभवाना कम है। swine flu में इसकी मदद से रोगी के रिकवर होने की प्रक्रिया को मजबूत किया जा सकता है। रोगी की दोनों हथेलियों और दोनों तलवों के सभी एक्यूप्रेशर बिंदुओं को दबाएं। प्रेशर देने के लिए किसी कड़ी चीज की बजाए अंगूठे का उपयोग करना चाहिए। चित्र में दिखाए गए अनुसार हथेलियों और तलवों के एक्यूप्रेशर पॉइंट्स का अंदाजा करें और प्रत्येक बिंदु पर एक मिनट प्रेशर डालें। दिन में 2-3 बार एक्यूप्रेशर लें। एक्यूप्रेशर लेना इतना आसान है कि मजबूत अंगूठे वाला घर का कोई भी वयस्क व्यक्ति रोगी को उपचार दे सकता है। वैसे, संभव हो तो किसी एक्सपर्ट एक्यूप्रेशर प्रोफेशन को घर पर बुलाया जा सकता है। स्वाइन फ्लू में भी उपयोगी flu के 8 उपयोगी accuressure पॉइंट्स यहां देखें।
स्वाइन फ्लू से बचाव (swine flu prevention)
प्रीवेंशन इज बेटर देन क्योर के सिद्धांत को हमेशा ध्यान रखें। वैसे तो, जीवन में हर कदम पर इसे याद रखना चाहिए लेकिन स्वाइन फ्लू जैसी बीमारियों के लिहाज से इसे अधिक गंभीरता से लेना चाहिए। यदि आपके शहर में या आस-पास स्वाइन फ्लू के मामले सामने आए हों तो तुरंत कुछ एहतियातों पर गंभीरता से अमल करें। जैसे-
भीड-भाड़ वाली जगहों पर जाने से बचें। यदि जाना ही पड़े तो नाक-मुंह पर मास्क लगाएं। इससे संक्रमित व्यक्ति की खांसी या छींक आदि के छींटों से आप बच पाएंगे।
बाहर कहीं भी ख्याल रखें, सार्वजनिक वाहनों बसों, ट्रेनों के हैंडलों, सीटों, कुर्सियों के हत्थों, टेबल पर वस्तूओं आदि को छूने के बाद हाथ से नाक, होंठ या आंख न छुएं। इन सारी जगहों पर इन्फेक्शन वाले वायरस मौजूद रह सकते हैं। घर से बाहर सैनिटाइजर का इस्तेमाल करें। बाहर से घर आकर सबसे पहले साबुन से हाथ धोएं। चेहरा साफ करें।
यह सच है swine flu सूअर का मांस खाने से नहीं फैलता, लेकिन यह भी सच है कि सूअरों के संपर्क में रहने वाले लोगों- जैसे सूअर पालकों, सूअर फार्म के आस-आप रहने वाले लोगों और सूअरों के साथ काम करने वाले वेट्रिनरी डॉक्टरों में इसके फैलने का खतरा अधिक होता है। इसलिए सूअर फार्म के आस-पास जाने या सूअरों के संपर्क में आने से भी बचें। स्वस्थ और रोगरोधी जीवनशैली अपनाएं। जहां तक संभव हो घर का बना खाना खाएं। खाना शाकाहारी हो और इसमें ताजे फलों और हरी सब्जियों की मात्रा बढ़ाएं। नींबू, आंवला, संतरा, नारियल पानी, नीम, तुलसी, गिलोय ग्रीन टी जैसे इम्यून वर्धन और भरपूर एंटीऑक्सीडेंट्स वाले पदार्थों का सेवन घर के हर सदस्य करें किसी न किसी रूप में जरूर करें। रोगी के साथ-साथ स्वस्थ व्यक्ति के स्वाइन फ्लू से बचाव के लिए भी इन्हीं उपायों का सहारा लेना चाहिए।
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