गांधीजी के प्रेरक प्रसंग: आम तौर पर गांधीजी की छवि एक कड़क अनुशासनप्रिय व्यक्ति की रही है। लेकिन उनकी विनोदप्रियता और हाजिरजवाबी का भी जवाब नहीं था। चुटीले सवालों का जवाब उसी चुटीले अंदाज में देने की कुशलता में वह माहिर थे। उन्होंने खुद ही कहा था, ‘यदि मुझमें हास्य बोध न होता तो मैं कबका मर गया होता’। प्रस्तुत है उनकी इसी विनोदप्रियता के दो किस्से-
1.
1931 में गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने गांधीजी लंदन पहुंचे। वह वहां भी अपने चिरपरिचित सामान्य पोशाक घुटने तक की धोती और चादर में थे। उनकी एक मुलाकात इंगलैंड के तात्कालीन राजा किंग रॉर्ज फ्रेडरिख से भी तय थी। उनसे एक अंग्रेज पत्रकार ने पूछा, ‘मि. गांधी क्या आपको लगता है राजा से मिलने के लिए आपका यह पोशाक सही है? गांधी ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, ‘जेंटलमैन, आप मेरे कपड़ों की चिंता न करें। राजा के पास हम दोनों लायक पर्याप्त कपड़े हैं।’
2.
गांधीजी के जमाने में भारतीय ट्रेनों में यात्रियों की हैसियत के हिसाब से फर्स्ट क्लास, सेकेंड क्लास और थर्ड क्लास (पहला, दूसरा और तीसरा दर्जा) हुआ करता था। आज जब एक अदना सा पंचायत समिति सदस्य भी ट्रेन यात्रा में राजधानी और फर्स्ट क्लास एसी के पास की जुगाड़ करता है, उस जमाने में गांधीजी के बारे में यह बात प्रसिद्ध थी कि वह हमेशा ट्रेन के तीसरे दर्जे के डब्बे में ही यात्रा करते थे। एक बार किसी ने उनसे पूछा कि वह तीसरे दर्जे में ही सफर क्यों करते हैं। उनका सहज उत्तर था, ‘बरखुरदार, क्योंकि हमारी रेलों में चौथा दर्जा नहीं होता’।
इसमें हास्य की बात तो अपनी जगह पर, लेकिन उनका इशारा इस तरफ था कि भारत के सबसे गरीब आदमी के लिए यदि तीसरे दर्जे से भी नीचे कोई दर्जा होता, तो वह उसीका प्रयोग करते। ऐसी थी भारत के आम आदमी के लिए गांधीजी की प्रतिबद्धता।
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