दृश्य- 1
रात हुई और महल रोशनी से जगमगा उठा। नौकर-चाकर मेहमानों के स्वागत के लिए मुख्य-द्वार पर मुस्तैदी से खड़े हुए। उनके मखमली पोशाकों में लगे सोने के बटन रोशनी में जगमगा रहे थे।
मेहमानों की शानदार बग्घियां प्रांगण में लाई गईं। नफीस परिधानों और आभूषणों से सज्जित कुलीन महानुभाव महल में पधारे। गायिकी के उस्तादों ने वातावरण में संगीत की सुमधुर लहरियां बिखेर दीं और सभी गणमान्य उस मनोहारी संगीत पर थिरकने लगे।
आधी रात को, नाना प्रकार के खुशबूदार खूबसूरत फूलों से सजे भव्य मेजों पर सबसे उम्दा और लजीज व्यंजन परोसे गए। आत्मा के अघा जाने तक अतिथियों ने डटकर भोजन किया और मदहोश हो जाने तक छक कर सुरापान किया। रात्रि के अंतिम प्रहर पार्टी खत्म हुई, और हर्षोल्लास के साथ लोग विदा हुए।
रात भर के जागरण और ठुंसे पेट लिए वे सब अपने भारी गद्देदार बिस्तरों पर बेसुध होकर कर गिरे और बेहोशी भरी नींद सोते रहे!
दृश्य- 2
शाम हो गई। दिन भर का थका-मांदा आदमी अस्त-व्यस्त और मलिन कपड़ों में अपने छोटे से घर के दरवाजे पर खड़ा है। वह दरवाजा खटखटाता है। द्वार खुलते ही वह अंदर घुसता है और उल्लास से चहकते हुए अपने बच्चों से लिपट जाता है।
फिर सब लोग चूल्हे के आस-पास बैठ जाते हैं। थोड़ी देर में पत्नी खाना बना लेती है। साथ मिलकर वे लकड़ी की मेज पर बैठकर खाना खाते हैं। खाने के बाद सब लालटेन की मद्धिम रोशनी को घेर कर बैठ जाते हैं और पूरे दिन भर की बातों पर चर्चा होती है।
रात का पहला प्रहर बीतने पर सब धीरे से उठते हैं और कृतज्ञ भाव से ईश्वर की प्रार्थना कर बिस्तर में लेट जाते हैं। फिर, नींद की रानी उतरती है प्यार से सबको अपनी गोद में मीठी नींद सुला लेती है।
लेबनानी मूल के अमेरिकन लेखक और विचारक खलिल जिब्रान के- ‘The Palace and The Hut’ का हिंदी रूपांतरण। खलिल जिब्रान का जन्म 1883 में लेबनान के बशरी शहर में हुआ था। बचपन में ही उनका परिवार अमेरिका जा बसा। उन्होंने अरबी और अंग्रेजी भाषाओं में लिखा।
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