भारत में वर्षा ऋतु का आगमन और मानसून का प्रवेश देश के हर भाग में उत्सव की तरह होता है। भारत की अर्थव्यवस्था का सबसे अहम हिस्सा कृषि आज भी मुख्य रूप से मानसून की वर्षा पर आश्रित है। वर्षा ऋतु न केवल देश में धन-धान्य का खजाना भरता है, बल्कि आम मनुष्य के मन में नई भावनाओं और उमंग का संचार भी करता है। ऐसे में, कविताओं में बारिश न हो, ऐसा नहीं हो सकता है। प्रस्तुत है, हिंदी के तीन समकालीन नामचीन कवियों की बारिश पर तीन बेहतरीन कविताओं का यह छोटा सा संकलन “बारिश पर तीन कविता : हमारे समय के 3 बेहतरीन रचनाकार”
जब वर्षा शुरु होती है
– केदारनाथ सिंह
जब वर्षा शुरु होती है कबूतर उड़ना बन्द कर देते हैं गली कुछ दूर तक भागती हुई जाती है और फिर लौट आती है
मवेशी भूल जाते हैं चरने की दिशा और सिर्फ रक्षा करते हैं उस धीमी गुनगुनाहट की जो पत्तियों से गिरती है सिप् सिप् सिप् सिप्
जब वर्षा शुरु होती है एक बहुत पुरानी सी खनिज गंध सार्वजनिक भवनों से निकलती है और सारे शहर में छा जाती है
जब वर्षा शुरु होती है तब कहीं कुछ नहीं होता सिवा वर्षा के
आदमी और पेड़ जहाँ पर खड़े थे वहीं खड़े रहते हैं सिर्फ पृथ्वी घूम जाती है उस आशय की ओर जिधर पानी के गिरने की क्रिया का रुख होता है।
बारिश से बचने की तैयारी जारी है
– गुलज़ार
बारिश आने से पहले बारिश से बचने की तैयारी जारी है
सारी दरारें बन्द कर ली हैं और लीप के छत, अब छतरी भी मढ़वा ली है खिड़की जो खुलती है बाहर उसके ऊपर भी एक छज्जा खींच दिया है मेन सड़क से गली में होकर, दरवाज़े तक आता रास्ता बजरी-मिट्टी डाल के उसको कूट रहे हैं ! यहीं कहीं कुछ गड़हों में बारिश आती है तो पानी भर जाता है जूते पाँव, पाँएचे सब सन जाते हैं
गले न पड़ जाए सतरंगी भीग न जाएँ बादल से सावन से बच कर जीते हैं बारिश आने से पहले बारिश से बचने की तैयारी जारी है !
बारिश
-आलोकधन्वा
बारिश एक राह है स्त्री तक जाने की
बरसता हुआ पानी बहता है जीवित और मृत मनृष्यों के बीच
बारिश एक तरह की रात है
एक सुदूर और बाहरी चीज़ इतने लंबे समय के बाद भी
शरीर से ज़्यादा दिमाग़ भीगता है
कई बार घर-बाहर एक होने लगता है!
बड़े जानवर खड़े-खड़े भींगते हैं देर तक आषाढ़ में आसमान के नीचे आदिम दिनों का कंपन जगाते हैं
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