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प्लास्टिक के नुकसान : पर्यावरण के लिए खतरा

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क्या आपने कभी ध्यान दिया हममें से ज्यादातर लोग सुबह सवेरे अपने मुंह के अंदर क्या डालते हैं? प्लास्टिक। जी हां, वही हानिकारक प्लास्टिक टूथ ब्रश के रूप में। कीमत में सस्ता और वजन में हल्के इस करामाती पदार्थ ने बड़ी तेजी से धातु और लकड़ी की चीजों की जगह ले ली। इसका चलन तेजी से बढ़ और 100 साल होते-होते अब हाल यह है कि प्लास्टिक के नुकसान से दुनिया त्रस्त है। आइए, जानते हैं जीवन और पर्यावरण पर क्या हैं प्लास्टिक के हानिकारक प्रभाव-

क्या हैं प्लास्टिक के नुकसान? क्यों बन रहा है यह जीवन और पर्यावरण के लिए खतरा?

1907 में जब अमेरिका के लियो बेकलैंड ने प्लास्टिक का आविष्कार किया था तब उसने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि धातु और लकड़ी का सस्ता और हल्का विकल्प बनने वाला यह पदार्थ कभी पृथ्वी पर जिंदगी के गले की हड्डी बनेगी। आज प्लास्टिक पूरी धरती के लिए खतरा बन चुका है। प्लास्टिक के नुकसान हमारे सेहत पर परोक्ष और प्रत्यक्ष दोनों रूपों में दिखने लगे हैं। घर से बाहर तक प्लास्टिक की चीजें हमारी जिंदगी में छाई हुई है। घर से लेकर खेतों तक हम जिस प्लास्टिक की वस्तुओं का इस्तेमाल करते हैं वह हमारे स्वास्थ्य के साथ-साथ हवा, पानी, मिट्टी और जीव-जंतुओं तक के स्वास्थ्य के लिए घातक है।

प्लास्टिक की चीजों का बेतहाशा उपयोग

हानिकारक प्लास्टिक की चीजों का जीवन में बेतहाशा उपयोग हमारे शरीर के आंतरिक अंगों पर जानलेवा प्रभाव डालता है और कैंसर का एक प्रमुख कारण बनता है। घर के फर्नीचर, रसोई के बरतन, कप, प्याली, गिलास, थालियों, पानी के घड़ों और पानी की बोतलों से लेकर, दवाओं सी शीशियां सब कुछ में हम प्लास्टिक के विकल्प अपनाते हैं और कभी सोचते नहीं कि अनजाने में हमारे पेट में, फेफड़ों में, किडनी तक में प्लास्टिक के सूक्ष्म कण कितनी बड़ी मात्रा में पहुंच रहे हैं। प्लास्टिक के ये सूक्ष्म कण हमारे शरीर के लिए धीमे जहर की तरह हैं।

कितना प्लास्टिक कितना दूध

रोजमर्रा के उपयोग में प्लास्टिक की सस्ती वस्तुओं का उपयोग हमें सुविधा तो देता है और तत्काल पैसे की बचत भी कराता है लेकिन लंबे समय में इसकी भरपाई हमें अपने स्वास्थ्य की कीमत पर करनी पड़ती है। जीवन से प्लास्टिक की वस्तुओं को हम अचानक पूरी तरह निकाल बाहर नहीं कर सकते लेकिन उनका विवेकपूर्ण इस्तेमाल जरूर कर सकते हैं। ..और इस तरह बहुत हद तक प्लास्टिक के हानिकारक प्रभाव से बचा जा सकता है।

प्लास्टिक के हानिकारक प्रभावों से बचने के कुछ व्यावहारिक उपाय

रसोई के अंदर तो प्लास्टिक का इस्तेमाल हमें बिल्कुल नहीं करना चाहिए। खाने-पीने की चीजों को प्लास्टिक के डब्बों, बोतलों की बजाए स्टेनलेस स्टील या तांबे, कांच या चीनी-मिट्टी के पात्रों में रखना चाहिए। स्वास्थ्य सुरक्षा के लिहाज से प्लास्टिक के ग्रेड निर्धारित किए गए हैं लेकिन इन्हें बनाने और बेचने वाले इनका कितनी ईमानदारी से पालन करेंगे यह हम नहीं जानते।

इसलिए बेहतर यही है कि कम से कम अपने घर के अंदर खाने-पीने की चीजों को हम प्लास्टिक से मुक्त रखें। रिसर्च और अध्ययन बताते हैं बोतलों में रखा पानी अपने अंदर कुछ न कुछ मात्रा में प्लास्टिक की विषाक्तता समा ही लेता है। फिर वह पानी के साथ हमारे शरीर में पहुंचता है। जहां संभव हो वहां बोतलबंद पानी पीने से बचना चाहिए। कुछ भी उठाकर मुंह में डाल लेने वाले बहुत छोटी आयु के बच्चों को हानिकारक प्लास्टिक या रबड़ के खिलौनें न दें। टिफिन, लंच, नाश्ते आदि प्लास्टिक के डब्बों या प्लास्टिक के टिफिन बॉक्स में पैक न करें। प्लास्टिक की थैलियों में मिलने वाले दूध और डेयरी उत्पादों को घर लाकर तुरंत किसी स्टेनलेस स्टील या कांच के बरतन में रखें।

किसकी गलती?

टेबल, कुर्सी, तिपाई, बैठने के मोढ़े, बाथरूम की बाल्टी, झाड़ू, डस्टबिन आदि ऐसी चीजें हैं जिनके इस्तेमाल से हमारे स्वास्थ्य पर सीधा असर नहीं पड़ता। लेकिन इन चीजों के टूट जाने या बेकार हो जाने पर इन्हें इधर-उधर फेंके नहीं। इन्हें इकट्ठा रख कर कबाड़ को दें, जहां से फिर उन्हें रिसाइकल के लिए फैक्ट्रियों में भेजा जाता है। उन्हें जलाना नहीं चाहिए। प्लास्टिक या रबड़ के धुएं अत्यंत जहरीले होते हैं और सांस के साथ खून में घुलकर तुरंत असर दिखाते हैं। वातावरण की हवा जहरीली हो जाती है और फिर वर्षा के साथ यह जहर नीचे आकर मिट्टी और पानी को जहरीला बनाता है।

प्लास्टिक की थैलियां हमारे लिए एक अनावश्यक लक्जरी है। सोचिए प्लास्टिक की इन थैलियों के आने से पहले भी लोग बाजार से सामान खरीदते थे। इस थोड़ी सी सहूलियत के कारण जीव-जंतुओं सहित संपूर्ण पर्यावरण को हानि पहुंचती है। अक्सर ऐसा होता है कि कचरे से खाना ढूंढ़कर खाने वाले गाय-मवेशी इन्हें निगल लेते हैं। उनकी आंतों में फंसकर ये प्लास्टिक की थैलियां उनके मौत के कारण बनती हैं। शहरों में इनकी वजह से सीवेज लाइनें जाम होती हैं। जमीन में दबकर भी ये नष्ट नहीं होते उलटा मिट्टी को प्रदूषित करते हैं। इसलिए, प्लास्टिक की थैलियों को ना कहें!

देश के अधिकतर राज्यों ने हानिकारक प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाए हैं, लेकिन कानून के पालन में लापरवाही के कारण इनका उपयोग जारी है। हमें खुद जागरुक होना चाहिए और दुकानदार से इनकी मांग नहीं करनी चाहिए। इनके स्थान पर दुकानदारों को कागज के थैलों में सामान देने के लिए प्रेरित करना चाहिए। इन थैलों में भरे समान रखने के लिए हम घर से कपड़े या जूट के झोले या बैग ले जाएं, जैसा कि पहले हुआ करता था।

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