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साइकिल यात्रा : एक अनोखी प्रेम कहानी

प्रेम की एक अनोखी दास्तान : वास्तविक जीवन की प्रेम कहानी

पुराने दिनों की बात है। तब इंटरनेट और मोबाइल नहीं थे। आज जैसी भागदौड़ नहीं थी और सपाट दिखने वाले देशी टाइप मॉडलों की गाड़ियां सड़कों पर आराम से चला करती थीं। चीजों से दुनिया तब इतनी जगमगाई नहीं थी लेकिन दिल्ली में तब भी भारत की राजधानी थी।

44 साल पहले ऐसे ही समय में एक युवा आदिवासी कलाकार था जो कनाट प्लेस के फुटपाथ पर लोगों के ‘10 मिनट में पोर्ट्रेट-स्केच’ बनाता था। लोगों को सामने बिठाकर फुटपाथ पर स्केच बनाने वाला यह कलाकार अपने फन में उस्ताद होने के बावजूद गरीब था। तब कलाकारों का जीवन आज की तरह चमकता हुआ नहीं था।

पीके महानंदिया और उनकी ऐतिहासिक साइकिल

एक दिन ऐसा हुआ कि सधी उंगलियों से पेंसिल-ब्रश चलाने वाला कलाकार नर्वस था। उस दिन उसके सामने उसका सब्जेक्ट एक लड़की थी। प्रथम महिला अंतरिक्ष यात्री वेलेंतीना तेरेस्कोवा और इंदिरा गांधी का स्केच बना चुके उस कलाकार के हाथ कांप रहे थे। जो स्केच बना, वह न कलाकार को पसंद आया न उस लड़की को। खराब स्केच के बावजूद लड़की उस कलाकार से इस तरह प्रभावित हुई कि उसने फिर से कलाकार को मौका देने का फैसला किया।

19 साल की वह खूबसूरत अमीर स्वीडिश लड़की और 26 साल का वह गरीब आदिवासी कलाकार अपनी इस पहली मुलाकात में ही अनुभव के एक बिल्कुल अलग धरातल पर थे। दोनों के लिए इसका कोई प्रत्यक्ष कारण नहीं था। वह स्वीडिश लड़की शार्लट वॉन लंदन में पढ़ती थी और उसके जीने के तरीके इतने अनोखे थे कि अपने नए ड्राइविंग लाइसेंस के साथ वह अपना वैन ड्राइव कर 22 दिन में यूरोप से भारत पहुंची थी।

उस पहली मुलाकात में डरते हुए कलाकार ने लड़की से कुछ अजीब सवाल पूछे- ‘तुम्हारी राशि क्या है? कहीं वृषभ तो नहीं? .. और ‘क्या तुम बांसुरी बजाती हो? … और क्या तुम्हारे पास कोई जंगल भी है?’ ‘हां, मैं वृषभ राशि की हूं। बांसुरी नहीं, लेकिन पियानो बजाती हूं। .. और स्वीडन के गांव में मेरा पुश्तैनी जंगल है’।पर, उसे ये सवाल समझ में नहीं आए। लेकिन, कलाकार उसके जवाब से खुश और चकित दोनों था।

उड़ीसा के एक गरीब ‘अछूत’ परिवार में जन्मे कलाकार का नाम प्रद्युम्न कुमार महानंदिया था। किसी आदिवासी ज्योतिषी ने उसकी मां को बताया था कि बच्चे की कुंडली में वृषभ राशि वाली उत्तर देश की किसी कन्या से विवाह का योग है जो बांसुरी बजाएगी और जंगल की मालकिन होगी। यह बात कलाकार प्रद्युम्न की मां ने उसे बताई थी।

अब कलाकार और उस लड़की की भावनाएं और मजबूत होने लगी। फिर दोनों उड़ीसा गए- अंगुल जिले में कलाकार के पुश्तैनी सुदूर गांव, जहां न बिजली थी, न सड़क। वहां दोनों ने शादी की- घर वालों के आशीर्वाद और आदिवासी रीति के साथ। आप कहेंगे, भारत के पिछड़े इलाके के उस गरीब कलाकार का उस सुंदर अमीर विदेशी लड़की को पसंद करना तो समझ में आता है, लेकिन वह लड़की? उसने इस रिश्तो को क्यों अपनाया? इसका जवाब ‘प्रेम’ के अलावा और क्या हो सकता है।

अब जैसा कि प्रेम में होता है, एक ट्विस्ट इस कहानी में भी आना लाजिमी था। दिन बीते, सप्ताह बीते। लड़की अपना लौटना टालती रही, लेकिन लौटना तो था ही। उसे लंदन में पढ़ाई पूरी करनी थी। इधर कलाकार को भी दिल्ली कॉलेज ऑफ आर्ट की अपनी पढ़ाई पूरी करनी थी। तो, लड़की चली गई और कलाकार ने पीछे से आने का वादा किया। वक्त बीतता गया और उन दोनों के बीच हजारों किलोमीटर का फासला चिट्ठियों के माध्यम से जु‌ड़ा रहा।

इसी तरह डेढ़ साल बीत गए। हवाई टिकट भेजकर कलाकार को स्वीडन बुलाने के लड़की के बार-बार किए जाने वाले पेशकश को लड़का हर बार यह कहकर मना करता रहा कि उसे वहां जाने का अपना इंतजाम खुद करना है- अपनी सुविधा और अपने सामर्थ्य से। उसने पूरी कोशिश की। अपना सबकुछ बेच-बाचकर भी वह यूरोप की हवाई टिकट लायक पैसे नहीं जुटा सका। लेकिन उसका इरादा पक्का था। उसे अपने ही दम पर वहां जाना था।

उतने कम पैसे में जो किया जा सकता था किया गया। एक सेकेंड हैंड पुरानी साइकिल खरीदी गई। अब इस साइकिल से उसे जो करना था, उसकी आसानी से कल्पना नहीं की जा सकती। जी हां, वह उसी साइलिक से कुछ जरूरी सामानों के साथ शार्लट से मिलने उसी रास्ते चल पड़ा, जिस रास्ते शार्लट भारत आई थी! अफगानिस्तान और ईरान के रास्ते असंभव सी लगने वाली यूरोप की यह यात्रा उस जमाने में कितनी मुश्किल रही होगी, आप कल्पना कर सकते।

तब न मोबाइल फोन था और न नेविगेशन! साइकिल खरीदने के बाद इतने पैसे भी नहीं बचे थे कि उनसे उस बेहद लंबी यात्रा में खाने-पीने और रहने के खर्चे पूरे होते। यहां कलाकार का हुनर काम आया। रास्ते भर वह लोगों के स्केच बनाता रहा और अपने खाने-पीने और ठहरने का इंतजाम करता रहा। तब एक अच्छी बात यह थी कि बहुत से देशों में वीजा का चलन नहीं था।

शार्लट से मिलने का किया हुआ अपना वादा उसने 10 देशों में 126 दिन- यानी 4 महीने से अधिक समय तक रोज औसतन 70 किमी साइकिल चलाकर 28 मई 1977 को पूरा किया। उस दिन वह स्वीडन के गोथनबर्ग पहुंचा जहां वह शार्लट से मिला।

महानंदिया दंपत्ति

डॉ. प्रद्युम्न कुमार महानंदिया और शार्लट महानंदिया वॉन स्कैडविन को एक दूसरे के साथ जीते हुए 44 साल हुए हैं। वे अपने दो बच्चों के साथ स्वीडन के छोटे से शहर बोरास में रहते हैं।

(बीबीसी के एक पुराने आलेख पर आधारित)

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