यह प्रेरक लघुकथा मनुष्य होने के नाते हमारे अपने मूल्य के बारे में है। मनुष्य का मूल्य हमेशा कायम रहता है, बस हमारे अंदर यह अहसास बना रहना चाहिए। कहानी पढ़ें-
एक दार्शनिक टाइप आदमी था। वह सीधे लोगों के बीच जाकर उन्हें आसान तरीकों से जिंदगी के बड़े सीख दिया करता था। एक दिन वह भीड़ में खड़ा चिल्ला रहा था।
‘मेरे हाथ में यह 1000/- का चेक है। यह मैं आपमें से ही किसी एक को दूंगा। बताइए कौन इसे लेना चाहेगा?’
सारे हाथ एक साथ उठे। तब उस आदमी में उस चेक को हाथ से मरोड़ कर जमीन पर फेंक दिया। ‘बताइए, अब इसे कौन लेना चाहेगा- उसने कहा।’ सारे हाथ फिर उठ गए।
आदमी मुस्कुराया। उसने चेक पर जूते रखे और उसे धूल में रगड़ दिया। ‘और, अब? बताइए, कौन है जो इसे अब भी लेना चाहेगा?’ सारे के सारे फिर खड़े हो गए।
आदमी मुस्कुराया और बोला- ‘वाह, तो आपको पता है, मसलने और जूते से दबाने के बावजूद भी इस चेक का मूल्य सुरक्षित है। दोस्तो, ठीक इसी तरह जिंदगी भी हमारे साथ करती है। हम मुसीबतों से घिरते हैं। हमारा पतन होता है। हालात हमें रौंद देता है। हम खुद को महत्वहीन समझने लगते हैं। लेकिन, हमारे अंदर हमारा असल मूल्य तब भी कायम रहता है, जैसे इस चेक का मूल्य कायम है। जिसे अपने मूल्य का अहसास होता है उसकी जिंदगी का चेक का कभी बेकार नहीं जाता। उसी मूल्य के सहारे वह जिंदगी दुबारा खड़ी करता है! हर आदमी खास है, हमें अहसास होना चाहिए!’
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