कन्याकुमारी : दक्षिण भारत का बेहतरीन पर्यटन स्थल
कल्पना कीजिए आप भारत में लेह से दक्षिण की ओर सीधी रेखा में चलना शुरू करते हैं और चलते रहते हैं। अंत में आपको ऐसे स्थान पर जाकर रुकना पड़ता है जहां से आगे हिलोरें लेता अथाह समंदर होता है। यही है कन्याकुमारी, जहां भारत देश की जमीनी सीमा खत्म होती है और समुद्र का अथाह विस्तार आरंभ होता है। हिंद महासागर के रूप में समुद्र का यह विशाल फैलाव पृथ्वी के दक्षिणी छोर दक्षिण-ध्रुव तक जारी रहता है।
हममें से बहुतों ने कन्याकुमारी का जिक्र पहली बार ‘कश्मीर से कन्याकुमारी’ के रूप में सुना होता है। स्वाभाविक है कि यह नाम हमारे लिए भारत के भौगोलिक विस्तार के एक महत्वपूर्ण संकेत या कीवर्ड जैसा है। यह शब्द यात्रा-प्रेमियों के अंदर एक कमाल का अहसास भरता है। केवल भारत नहीं, विशाल भारतीय-उपमहाद्वीप के दक्षिणी शीर्ष बिंदु का यह रोमांचक भाव भारत के अलावा कई अन्य देशों के यात्रा-पसंद लोगों के मन में भी जरूर आता होगा।
लेकिन याद रखिए भारत के मानचित्र का यह अंतिम दक्षिणी सिरा नहीं है, क्योंकि हमारे अंडमान और निकोबार द्वीप समूह का विस्तार इंदिरा पॉइंट के रूप में दक्षिण में इससे भी आगे तक है। यूं तो कन्याकुमारी जाने के कई आकर्षण हो सकते हैं लेकिन भारत के उस आखिरी बंदु पर हिमालय की ओर खड़े होकर संपूर्ण भारत को महसूस करने का जो अनुभव आप यहां कर सकते हैं, वह कहीं और नहीं हो सकता! केवल यही एक कारण आपको कन्याकुमारी बार-बार ले जा सकता है।
भारत के सुदूर उत्तर में कारगिल से शुरू कर कन्याकुमारी तक की यात्रा यदि आप सड़क के रास्ते करें तो आपका यह सफर कम से कम 3890 किमी लंबा होगा! शानदार 4-6 लेन हाईवे जिसे नॉर्थ-साउथ कॉरीडोर या कश्मीर-कन्याकुमारी हाईवे कहा जाता है, श्रीनगर को कन्याकुमारी से जोड़ता है। दिल्ली से कन्याकुमारी की दूरी 2850 किमी है। कन्याकुमारी में रेलवे का टर्मिनल स्टेशन है जहां तक आप ट्रेन से पहुंच सकते हैं, लेकिन ट्रेनें सीमित हैं। आप नागरकोइल तक ट्रेन से पहुंचने का विकल्प भी चुन सकते हैं जहां से फिर हरे-भरे खेतों से होकर बस या तिपहिया वाहनों से 36 किमी की दूरी तय कर कन्याकुमारी पहुंचा जा सकता है। केरल के तटवर्ती इलाके से होकर कन्याकुमारी की रेलयात्रा का अपना खास आकर्षण है। आप रास्ते भर लगून, बैकवॉटर, हरे-भरे धान के खेतों, नारियल के बागानों के कभी न भूलने वाले दृश्यों के रोमांच अपने अंदर सहेज सकते हैं।
कन्याकुमारी में मंदिर के रूप में सबसे खास दर्शनीय स्थल समुद्र तट पर बसा देवी कन्याकुमारी का मंदिर है जो भारत के 108 शक्ति पीठों में शुमार है। आधुनिक युग में कन्याकुमारी का नाम स्वामी विवेकानंद के साथ जुड़कर भी अधिक लोकप्रिय हुआ है। 1894 में, समुद्र तट से 1 किमी दूर छोटी सी पहाड़ीनुमा जिस विशाल चट्टान तक खतरनाक लहरों से बीच से विवेकानंद तैरकर पहुंचे थे वहां आज उनकी स्मृति में काले-भूरे पत्थरों से एक खूबसूरत स्मारक बना है। यह चट्टान अब विवेकानंद रॉक के नाम से प्रसिद्ध है। शक्तिशाली समुद्री हवाओं के बीच खुले समुद्र में खड़ा यह स्मारक पर्यटकों के बीच बेहद लोकप्रिय है। सुबह 8 बजे से शाम के 4 बजे तक चलने वाली फेरी सेवा के जरिए आप यहां पहुंच सकते हैं।
विवेकानंद रॉक के पास ही ऐसी ही एक दूसरी चट्टान है जिस पर विख्यात संत कवि तिरुवल्लुवर की पत्थर से बनी 133 फीट ऊंची मूर्ति स्थापित है। तमिल भाषा में तिरुकुरल जैसे महान ग्रंथ की रचना करने वाले संत तिरुवल्लुवर का जन्म तमिलनाडु में आज के चेन्नई के पास मायलापुर में हुआ था। संस्कृत भाषा के लिए जैसे वाल्मीकि वैसे ही तमिल भाषा के लिए तिरुवल्लुवर! समुद्र तट पर ही गांधी स्मारक है जहां महात्मा गांधी का भष्म अवशेष रखा गया है।
यदि आप प्रकृति-प्रेमी हैं तो कन्याकुमारी के समुद्री तट के जबरदस्त आकर्षण में बंधे बिना न रह पाएंगे। यहां समुद्र नीला-हरा या कुछ-कुछ एमरल्ड पत्थर या पन्ने की तरह दिखाई देता है। तट पर यहां-वहां काई लगी बड़ी-बड़ी चट्टाने हैं। तेज हवाओं में हरे समुद्र की ऊंची लहरें जब इन काई लगी चट्टानों पर टूट कर दूधिया रंगों में बिखरती हैं, तब यकीन मानिए आप अपना सब कुछ भूल जाएंगे। क्षण भर के लिए आपकी आखें चट्टानों के पीछे उठे सफेद झाग के अंबार में उलझी रह जाती हैं, जिसके पीछे बस नीला आसमान होता है। किनारे का रेत और हर चट्टान साफ-सुथरा और पानी तो इतना निर्मल कि आप पानी में डूबे रेत और पत्थरों को साफ-साफ देख पाएं!
हल्की गर्मी के साथ कन्याकुमारी का मौसम सालों भर लगभग एक समान रहता है सिवाय उन बारिश के दिनों के, जब हवा में शीतलता और नमी बढ़ जाती है। अक्टूबर-नवंबर यहां मानसून वर्षा के महीने हैं। दिसंबर, जनवरी और फरवरी तुलनात्मक रूप से सबसे कम गर्म महीने हैं। पूरब और पश्चिम दोनों तरफ समुद्र का विस्तार है इसलिए आप यहां से समुद्र में सूर्योदय और सूर्यास्त दोनों देख सकते हैं। यहां के सुबह-शाम तो सुहाने होते ही हैं लेकिन रात में तट पर बैठ कर चट्टानों से टकराती लहरों को सुनना कमाल का अनुभव हो सकता है!
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