ऐसे समय में जबकि इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन की विश्वसनीयता पर बार-बार उंगलियां उठाई जाती हैं, इंटरनेट वोटिंग, यानी ऑनलाइन वोटिंग की बात करना एक संकोच का विषय हो सकता है। 2014 में हुए चुनावों के आंकड़ों से एक चिंताजनक बात यह सामने आई कि भारत में मतदान योग्य कुल लगभग 83 करोड़ लोगों में से केवल लगभग 55 करोड़ लोगों ने वोट डाले थे। यानी, 28 करोड़ लोगों के वोट पड़े ही नहीं! यानी, देश के एक चौथाई से अधिक मतदान योग्य लोग सरकार चुनने की प्रक्रिया से अलग रहे। ऐसा क्यों?
इंटरनेट वोटिंग या ऑनलाइन वोटिंग क्यों?
वोट नहीं डालने के कई कारणों में एक कारण यह है कि इंटरनेट यूज करने वाली तकनीक पसंद नई पीढ़ी को मतदान की पारंपरिक प्रक्रिया रास नहीं आ रही। उनके लिए मतदान केंद्रों पर जाना, लाइन में अपनी बारी का इंतजार करना एक बोरियत भरा काम हो सकता है। एक दूसरा बड़ा कारण बड़ी संख्या में लोगों का रोजगार और नौकरी के सिलसिले में बाहर रहना है। वोट डालने और सरकार चुनने का उत्साह कितना भी बड़ा हो लेकिन छुट्टी लेकर लंबी यात्रा करना और वोटिंग के दिन अपने मतदान क्षेत्र में पहुंचना सबसे लिए संभव नहीं हो सकता। बहरहाल, इतनी बड़ी संख्या में लोगों का चुनावी प्रक्रिया से बाहर रहना लोकतंत्र के स्वास्थ्य के लिए सही नहीं। यह बात चुनाव आयोग, संसद और सरकार की चिंताओं में प्रमुखता से शामिल होनी चाहिए। देश के अंदर प्रवासी लोग अपने प्रवास की जगह से भी अपने मूल कॉन्स्टीट्यूएंसी में वोट डाल सकें इसके लिए विकल्प तलाशे जाने चाहिए। ऑनलाइन वोटिंग या इंटरनेट वोटिंग की सुविधा ऐसा ही एक विकल्प हो सकता है।
वक्त आ गया है, अब इंटरनेट वोटिंग पर देश चर्चा करे, इसके सभी पहलुओं का अध्ययन करे। इसके मजबूत और कमजोर पक्षों की गहराई से पड़ताल हो और इसे लागू करने की संभावनओं पर विचार किया जाए। ऑनलाइन वोटिंग कोई अभूतपूर्व विचार नहीं है। मौजूदा समय में दुनिया में कम से कम 14 देश ऐसे हैं जहां इंटरनेट के जरिए ऑनलाइन वोटिंग की अवधारणा किसी न किसी रूप में या अस्थायी स्वरूप में मौजूद है। एस्टोनिया पूरी तरह स्थायी इंटरनेट वोटिंग प्रणाली अपनाने वाला देश बन चुका है, वह भी 2005 से ही। अब यह कहा जा सकता है कि 13 लाख की आबादी वाला एस्टोनिया एक छोटा देश है जबकि उस तुलना में भारत की परिस्थितियां जटिल और जनसंख्या अथाह है।
जो भी हो, ऑनलाइन वोटिंग पर बहस तो होनी ही चाहिए। वोट डालने की मौजूदा प्रत्यक्ष प्रणाली के साथ इसे एक ‘हाइब्रिड’ सिस्टम के रूप में तो आजमाया जा ही सकता है। यदि प्रणाली के सुरक्षित और भरोसेमंद होने को लेकर आशंकाए हैं तो इस मामले में ऑन लाइन बैंकिंग के उदाहरण से सीखा जा सकता है। किसी देश की वित्तीय अर्थव्यवस्था का सबसे नाजुक अंग उसकी बैंकिंग प्रणाली होती है। जब उसे इंटरनेट के जरिए सुरक्षित रूप से ऑनलाइन चलाया जा सकता है तो इंटरनेट वोटिंग सिस्टम क्यों नहीं?
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Sumit Singh
Jab sab kuchh online to Voting bhi online kyon nahi hona chahie. True Digital India tab hoga jab yhan kaa nagarik apane voting right ko online execute kar sake. Sarkar ko is baare me gambhirta se vichar karana chahie.