कश्मीर समस्या : विलय और विभाजन
ब्रिटिश शासन से मुक्त होने के समय भारत का नक्शा वैसा नहीं था जैसा आज है।तब भारत में दो प्रकार के राज्य हुआ करते थे- एक वे जो सीधे ब्रिटिश शासन के अधीन थे, और दूसरे वे जिनपर अंग्रेजों के नियंत्रण में देशी राजा शासन करते थे। देशी राजाओं के शासन वाले इन रियासतों की संख्या 560 के लगभग थी, जिन्हें स्वतंत्र भारत के गृह मंत्री सरदार पटेल के नेतृत्व में समझा-बुझाकर या बल पूर्वक भारत में विलय कराया गया। 2,22,236 वर्ग किमी क्षेत्रफल वाले विशाल जम्मू-कश्मीर राज्य का भारत में विलय वहां के महाराजा हरिसिंह की सहमति से हुआ था।
संयुक्त कश्मीर का कुल क्षेत्रफल 2,22,236 वर्ग किमी था। जिसमें से 78,114 वर्ग किमी 1947 से पाकिस्तान के कब्जे में है। 37,555 वर्ग किमी अक्साई-चिन का इलाका 1962 में चीनी अतिक्रमण के बाद से चीन के कब्जे में है। 1963 में पाकिस्तान ने बाल्टिस्तान के उत्तर का 5,180 वर्ग किमी इलाका चीन को सौंप दिया जिसमें विश्व की दूसरी सबसे ऊंची चोटी K2 यानी काराकोरम 2 (8611 मी.) स्थित है।
महाराजा हरिसिंह के हस्ताक्षर और शेख अब्दुल्ला की पार्टी नेशनल कॉन्फ्रेंस की सहमति से जिस जम्मू-कश्मीर राज्य का भारत में विलय हुआ था वह 2,22,236 वर्ग किमी क्षेत्रफल वाला संयुक्त संयुक्त जम्मू-कश्मीर था। आज भारत के संघ के प्रत्यक्ष संप्रभुत्व में इस क्षेत्रफल का 50% से भी कम क्षेत्र आता है। कुछ तात्कालीन राजनैतिक नेतृत्व की अदूरदर्शिता और कुछ परिस्थितियों के दबाव में उसके झुक जाने की वजहों से आज मूल कश्मीर राज्य खंडित होकर तीन भागों में विभाजित है।
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जम्मू-कश्मीर के लिए भारत-पाकिस्तान युद्ध और भारत का संयुक्त राष्ट्र में अपील
अक्टूबर 1947 में पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर पर पश्चिम और उत्तर से हमला कर आज के POK (पाक अधिकृत कश्मीर और गिल्गिट-बाल्टिस्तान) को जम्मू-कश्मीर राज्य से अलग कर दिया। पाकिस्तान ने इस हमले में अपने सैनिकों को कबाइली वेष में भेजा था ताकि दुनिया के सामने इस हमले में पाकिस्तान सरकार का हाथ होने से इनकार किया जा सके।
महाराजा हरिसिंह द्वारा जम्मू-कश्मीर राज्य के भारत में अधिकृत विलय के बाद भारतीय सेना ने मोर्चा संभाला और बहादुरी से पाकिस्तानी सैनिकों को सफलतापूर्क पीछे धकेलने का अभियान चलाया। इस अभियान में भारतीय सेना को लगातार मिल रही सफलताओं के बावजूद भारत सरकार ने जनवरी 1948 को संयुक्त राष्ट्र की मध्यस्थता के लिए अपील करने का रास्ता चुना।
दिसंबर 1948 तक भारतीय सेना पश्चिम में चंबा, नौशेरा, पुंछ, उत्तर में कुपवाड़ा, कार्गिल, लेह-लद्दाख तक के इलाके पाकिस्तानी सेना से खाली कराने में सफल रही। यह अभियान सफलता के साथ आगे बढ़ता जा रहा था, लेकिन जनवरी 1949 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा पारित प्रस्ताव के अनुसार सीज-फायर (युद्ध-विराम) लागू हुआ। जहां तक भारतीय फौज पहुंच चुकी थी उन स्थानों को लाइन ऑफ कंट्रोल (नियंत्रण रेखा) मानकर संयुक्त राष्ट्र की कार्रवायी का इंतजार किया जाने लगा।
संयुक्त राष्ट्र में जम्मू-कश्मीर में जनमत संग्रह के जरिए मामला सुलझाने का फैसला लिया गया था। उसके निर्यण के अनुसार पाकिस्तान को तुरंत अपनी सेना जम्मू-कश्मीर के सभी इलाकों से पूरी तरह हटाना था। संपूर्ण जम्मू-कश्मीर में कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए भारत को न्यूनतम सैन्य बल तैनात रखने को कहा गया। कश्मीर के लोकप्रिय नेता शेख अब्दुल्ला के साथ होने से भारत सरकार को जनमत संग्रह के परिणाम का भारत के पक्ष में जाने का भरोसा था।
तात्कालीन अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देशों के पक्षपातपूर्ण रवैये ने पाकिस्तान के लिए शह का काम किया और उसने अपनी सेना जम्मू-कश्मीर से नहीं हटाई। भारत को संयुक्त राष्ट्र से जैसी उम्मीद थी वैसा कुछ नहीं हुआ। भारतीय सेना का विजय अभियान रोककर अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता के इस फैसले पर तात्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू बहुत पछताए, लेकिन मामला बिगड़ चुका था। आज तक भारत और पाकिस्तान के बीच कार्गिल की लड़ाई सहित 4 युद्ध लड़े जाने के बावजूद जम्मू-कश्मीर अपनी खंडित और अशांत स्थिति का दंश झेलने को मजबूर है।
1947-48 में हुए उस प्रथम भारत-पाक युद्ध में भारत ने अपने 1104 सैनिक खोए और 3154 सैनिक घायल हुए। पाकिस्तान के 6000 सिपाही मारे गए और लगभग 14,000 घायल हुए। जम्मू, कश्मीर घाटी और लद्दाख के साथ भारत ने दो तिहाई जम्मू-कश्मीर यानी 1,39,345 वर्ग किमी इलाका पाकिस्तानियों के जबरन कब्जे से मुक्त कराने में सफलता पाई। 14 साल बाद, 1962 में भारत को इस 1,39,345 वर्ग किमी क्षेत्रफल में से 37,555 वर्ग किमी इलाका चीन के हाथों गंवाना पड़ा।
जम्मू-कश्मीर आज /Kashmir today
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आज भारतीय जम्मू-कश्मीर में 3 डिविजन हैं- जम्मू, कश्मीर घाटी, और लद्दाख। इनमें 22 जिले हैं जिनकी कुल आबादी 1 करोड़ 26 लाख और क्षेत्रफल लगभग 1,01,387 वर्ग किमी है। जम्मू-कश्मीर का सबसे बड़ा जिला लद्दाख है जिसका प्रशासनिक मुख्यालय लेह है।
राज्य की सर्वाधिक आबादी 55% आबादी कश्मीर घाटी में बसती है जिसके पास राज्य के कुल क्षेत्रफल का लगभग 16% हिस्सा है। जम्मू डिविजन में राज्य की 43% बसती है और इसके पास राज्य के क्षेत्रफल का लगभग 26% हिस्सा है। लद्दाख क्षेत्र के पास लगभग 3% आबादी और 58% क्षेत्रफल है।
जम्मू-कश्मीर में विभिन्न धर्मों के और विभिन्न भाषा-भाषी लोग रहते हैं। राज्य में सर्वाधिक लगभग 68 प्रतिशत लोग इस्लाम को मानते हैं। 28% हिंदुत्व, 2% सिख और 1% आबादी बौद्ध मत की अनुयायी है। राज्य में कुछ आबादी ईसाई और जैन मतावलंबियों की भी है। कश्मीर घाटी की 96% आबादी इस्लाम को मानती है। जम्मू डिविजन में लगभग 63% आबादी हिंदुत्व की अनुयायी है और लगभग 34% लोग इस्लाम को मानते हैं और तीसरे नंबर पर सिख मतावलंबी हैं। लद्दाख में लगभग 47% प्रतिशत लोग इस्लाम के अनुयायी हैं, 40% लोग बौद्ध हैं और 12% हिंदुत्व को मानने वाले।
राज्य में सर्वाधिक 53% लोग कश्मीरी बोलते हैं। 21% हिंदी, 20% डोगरी, 1.8% पंजाबी और अन्य भाषाएं बोलने वाले लोग लगभग 4% हैं।
80 के दशक में पंजाब से पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद की कमर टूटने के बाद पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद फैलाने की योजना पर काम करना शुरू किया। इसके बाद सीमा पार से कश्मीर में सशस्त्र घुसपैठ कराने, स्थानीय युवाओं को भारत के खिलाफ भड़काने और उन्हें आंतक की आग में धकेलने का जघन्य खेल शुरू हुआ। कश्मीर घाटी और जम्मू के इलाके इससे सबसे ज्यादा प्रभावित हुए।
1990 के दशक तक आते-आते धर्मों के मेल की कश्मीरी परंपरा टूटने लगी। कश्मीर घाटी से एक अनुमान के मुताबिक 3-6 लाख कश्मीरी पंडितों को अलगाववादियों ने घाटी से पलायन करने पर मजबूर किया। आज ये कश्मीरी देश के विभिन्न शहरों में शरणार्थी रूप में जी रहे हैं।
जम्मू-कश्मीर संक्षिप्त ऐतिहासिक झलक
कल्हण रचित ‘राजतरंगिणी’ के अनुसार कश्मीर घाटी पहले एक विशाल झील के रूप में था। पौराणिक अनुश्रुतियों के अनुसार इस विशाल झील में रहने वाले नाग नामक दुष्ट राक्षस को ऋषि काश्यप ने भगवान शिव की पत्नी सती की मदद से पराजित कर झील के पानी को झेलम (प्राचीन नाम वितस्ता) नदी के रास्ते बहाया और कश्मीर घाटी में मानव के बसाव और खेती के लिए विशाल भूभाग तैयार किया। ऋषि काश्यप के नाम पर इस स्थान का नाम “काश्यपपुर –> काश्यपमार –> कश्मीर” पड़ा। महाभारत काल में और ई.पूर्व छ्ठी शताब्दी, यानी बुद्ध के काल में यह प्रदेश कंबोज कहलाता था और 16 महाजनपदों में से एक था।
जम्मू-कश्मीर में प्राचीन काल से लेकर 14वीं शाताब्दी के आरंभ तक हिंदू और बौद्ध धर्म का प्रचलन रहा। प्राचीन काल में मौर्य साम्राज्य का विस्तार कश्मीर तक था। दूसरी शताब्दी में सम्राट कनिष्क के शासन काल में कश्मीर के कुंडलवन में चौथे बौद्ध महासम्मेलन का आयोजन किया गया था, जिसमें बौद्ध धर्म दो उपसंप्रदायों हीनयान और महायान में विभाजित हुआ। 8वीं शताब्दी में यहां कर्कोट वंश के महाराज ललितादित्य हुए जिन्होंने अनंतनाग के प्रसिद्ध मार्तंड मंदिर का निर्माण कराया। 12वीं शताब्दी में कल्हण ने प्रसिद्ध इतिहास ग्रंथ राजतरंगिणी की रचना कश्मीर में ही की थी। इस ग्रंथ को भारत में वैज्ञानिक इतिहास लेखन की परंपरा का पहला ग्रंथ माना जाता है।
14वीं शताब्दी में कश्मीर में इस्लाम का प्रवेश हुआ। 14वीं-15वीं शताब्दी में यहीं सिकंदर बुतशिकन जैसा कुख्यात सुल्तान हुआ, और जैन-उल-आबिदीन जैसे प्रसिद्ध शासक भी हुए जिन्हें कश्मीर के हिंदू-मुस्लिम आदर के साथ ‘बड़ शाह’ के नाम से याद करते हैं। 16वीं शताब्दी में कश्मीर पर मुगलों का शासन रहा। मुगलों के बाद कश्मीर पर पठानों का और फिर 1814 में महाराजा रणजीत सिंह का शासन कायम हुआ। 1846 में अंग्रेजों के हाथों महाराजा रणजीत सिंह की हार के बाद अंग्रेजों ने डोगरा शासक गुलाब सिंह को कश्मीर सौंपा। इसी गुलाब सिंह के वंश के अंतिम शासक थे महाराजा हरिसिंह।
संविधान की धारा 370 और 35ए के प्रावधानों के तहत जम्मू-कश्मीर में देश के बाकी राज्यों के नागरिकों के कई अधिकार निरस्त हो जाते हैं। ये दोनों धाराएं जम्मू-कश्मीर के लिए एक किस्म की दोहरी नागरिकता जैसा प्रावधान करती हैं। उदाहरण के लिए, भारत के नागरिक देश के किसी भी राज्य में संपत्ति खरीद सकते हैं, वहां की सरकारी नौकरियों में शामिल हो सकते हैं, वहां मतदान कर सकते हैं लेकिन जम्मू-कश्मीर में उनके ये अधिकार लागू नहीं होते।
लेकिन, धारा 370 के प्रावधानों में 1954 से ही संशोधन किए जाते रहे हैं। समय-समय पर हुए इन्हीं संशोधनों के कारण जम्मू-कश्मीर में आईएएस और आईपीएस अधिकारियों की नियुक्ति, सीएजी, सर्वोच्च न्यायालय, निर्वाचन आयोग के अधिकारों का विस्तार जैसे प्रावधना लागू हुए। राज्य में सामाजिक सुरक्षा और बीमा कानूनों, श्रम कल्याण, श्रमिक संगठनों आदि से संबंधित केंद्रीय कानून लागू कराए गए। धारा 370 में संशोधन कर राज्य में कानून व्यवस्था बिगड़ने की स्थिति में राष्ट्रपति शासन का प्रावधान भी किया गया।
राज्य से प्रधानमंत्री (वजीर-ए-आजम) और सद्र-ए-रियासत जैसे पदों को खत्म कर उनकी जगह अन्य राज्यों की तरह मुख्यमंत्री और राज्यपाल के पद लाए गए। राज्य की जनता को प्रत्यक्ष मतदान द्वारा देश की लोकसभा में अपने प्रतिनिधि भेजने का अधिकार दिया गया।
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