65 की उम्र में कर्नल सैंडर्स और KFC – केंटुकी फ्रायड चिकेन (Kentucky Fried Chicken) की सफलता की कहानी!
सफलता, कामयाबी, सक्सेस और स्ट्रगल जैसे शब्दों से होने वाली चर्चाओं के केंद्र में आम तौर पर कोई युवा ही होता है। लेकिन, आज पढ़िए वह कहानी जो कर्नल सैंडर्स नामक ऐसे आदमी के बारे में है जिसका स्ट्रगल उम्र के उस पड़ाव तक चलता रहा जब आदमी अमूमन पूरी जिंदगी काम करने के बाद रिटायर होने की तरफ बढ़ता है। आर्थिक रूप से एक ठीक-ठाक जीवन के लिए संघर्ष करता हुआ आधी-अधूरी सफलता के साथ वह आदमी 62 साल की उम्र तक पहुंचता है। सफलता का पीछा करते-करते थक कर एक दिन वह अपने जीवन का अंत करने की सोचता है, लेकिन उसे लगता है कहीं कुछ रह गया है जिसे कर लेना चाहिए और एक बार फिर से वह नई उम्मीद के साथ नई कोशिश करने के लिए चल देता है। सफेद बाल और अपराजित इच्छाओं वाला यह आदमी एक नौजवान स्ट्रगलर की तरह कामयाबी की कोशिश करते-करते आखिर 65 की उम्र में पूरी दुनिया के सामने अपनी उपयोगिता साबित कर ही देता है। (कर्नल सैंडर्स और KFC की कहानी)
दोस्तो, यदि आप अपने सपने के साथ जीते रहे, सफल होने की कोशिशों में बार-बार हारते रहे, बार-बार नकारे जाते रहे और आपको लगा है कि तेजी से फिसलती आपकी उम्र आपको कंसेशन नहीं देने वाली, तो मैं कहता हूं आप अब भी हार मत मानिए। साल की गिनती करना छोड़िए, आखिर उम्र एक संख्या के सिवा कुछ नहीं! आइए जानते हैं 65 साल की उम्र में KFC यानी केंटुकी फ्रायड चिकन (Kentucky Fried Chicken) की नींव रखने वाले कर्नल हार्लैंड सैंडर्स (Colonal Harland Sanders) के सफल होने की मार्मिक कहानी क्या है।
हार्लैंड सैंडर्स का जन्म 1890 में अमेरिका के हेनरीविले (इंडियाना) में हुआ था। 6 साल के थे तब पिता की मृत्य हो गई। मां ऊंचे विचारों की अनुशासन प्रिय महिला थीं। उन्होंने सैंडर्स के दिमाग में बुरी लतों से दूर रहने, बुरी संगत से दूर रहने, ईश्वर पर भरोसा करने और ईमानदारी से मिहनत करते रहने की बात बचपन में मजबूती से बिठाई थीं। सैंडर्स और अपने दो अन्य बच्चों को पालने के लिए मां ने एक टमाटर सॉस पैक करने वाली कंपनी में नौकरी कर ली। मां काम पर जाती और घर में अपने दोनों छोटे भाई-बहनों की देखभाल का जिम्मा सैंडर्स का होता। 7 साल की उम्र में वह रोटी-सब्जी बनाना सीख चुके थे।10 साल की उम्र में वह पास के खेत में मजदूरी करने लगे। परिवार चलाने की जिम्मेदारी में मां ने दूसरी शादी की। अब, सैंडर्स और पूरा परिवार सैतेले पिता के घर ग्रीनवुड (इंडियाना) चले आए। यहां उन्हें सातवीं कक्षा में स्कूल छोड़कर फिर से खेतों में मजदूरी करनी पड़ी। सौतेले पिता की पिटाई से आजिज आकर उन्होंने मां की सहमति से एक दिन घर छोड़ दिया और घोड़ागाड़ी पेंट करने के नए काम में लग गए। 14 साल की उम्र में सैंडर्स दक्षिणी इंडियाना चले गए और फिर से खेतों में काम करने लगे। 1906 में 16 साल के सैंडर्स को चाचा की सिफारिश से कंडक्टरी का काम मिल गया, लेकिन जल्द ही वह अमेरिकन आर्मी में टेम्परेरी जॉब पर भर्ती हो गए। 1 साल बाद, आर्मी से निकलकर फिर चाचा की मदद ली और इस बार रेलवे इंजन में कोयला झोंकने वाले इंजन स्ट्रोकर की नौकरी कर ली। तब उनकी उनकी उम्र 17 साल थी।
1909 में रेलवे में नौकरी करते हुए 19 साल की उम्र मे उन्होंने जोसेफाइन किंग से शादी की। इसके बाद के दौर में, रेलवे में नौकरी करते हुए ही वह कॉरेस्पॉंडेंस कोर्स से रात के समय लॉ की पढ़ाई करने लगे। फिर रेलवे की नौकरी छूट गई और उसके बाद पत्नी जोसेफाइन उन्हें छोड़कर अपने बच्चों के साथ अपने पिता के घर रहने चली गई। इधर, कुछ दिनों की बेकारी और संघर्ष के बाद सैंडर्स अरकांसस के लिट्ल रॉक में लॉ की प्रैक्टिस करने लगे। एक दिन कोर्ट रूम में अपने ही एक क्लायंट के साथ झगड़े के बाद उनके लॉ का यह कॉरियर भी खत्म हो गया। फिर वह मां के पास हेनरीविले लौटे और स्थानीय रेलवे में काम करने लगे। कुछ दिनों बाद वह इंश्योरेंस एजेंट बनकर पॉलिसी बेचने लगे, मगर अपनी मर्जी से चलने का आरोप लिए जल्द ही इस काम से निकाले गए। इसी तरह सेल्समैन के छोटे-मोटे काम करते हुए 1920 में उन्होंने ओहायो नदी में नाव चलाने का काम शुरू किया और लोगों को नदी पार कराने लगे। फिर इस काम को उन्होंने एक फेरी कंपनी का रूप दिया। काम चल निकला। इस कंपनी में उन्होंने अपनी भागीदारी बहुत कम रखी और कंपनी के सेक्रेटरी के रूप में काम करने लगे। फिर एक दिन लगा कि यह काम उनके लिए नहीं है, और उन्होंने पद से इस्तीफा देने के साथ ही अपने सारे शेयर बेच डाले। इस पैसे से एसीटिलीन लैंप बनानी की फैक्ट्री खोली गई, लेकिन कुछ ही दिनों बाद कंपनी बंद हो गई और इसके साथ ही उनकी सारी जमा-पूंजी भी डूब गई। वह केंटुकी चले आए और आजीविका के लिए फिर से सेल्समैन का काम करने लगे।
1930 में केंटुकी में ही उन्हें एक तेल कंपनी से हाईवे किनारे सर्विस स्टेशन चलाने के लिए एक कमरे की जगह मिली जिसमें वह ऑर्डर पर चिकन फ्राई तैयार करते और कस्टमर तक पहुंचाते। फिर यह ढाबे की शक्ल में आया। सर्विस स्टेशन का किराया फ्री था, शर्त थी कि कमाई का एक हिस्सा वह कंपनी को देंगे। चिकन फ्राई तैयार करने का यह काम उनके मन को जम गया। वह इस काम में अपना बेहतरीन देने में डूब गए। 40 की उम्र में ही सही, उन्होंने वह काम ढूंढ़ लिया था जिसे करना वह दिल से चाहते थे। उनके लजीज भुने मुर्ग (फ्राइड चिकन) लोगों को पसंद आए। धीरे-धीरे इस स्वाद की खुशबू केंटुकी के गवर्नर तक पहुंची। गवर्नर को चिकन का यह स्वाद इतना भाया कि उसने सैंडर्स को ‘केंटुकी कर्नल’ की मानद उपाधि ही दे डाली, और तब से उनके नाम में ‘कर्नल’ जुड़ गया। यह बात 1935 की है। सड़क किनारे का यह ढाबा अपने लजीज फ्राइड चिकन के कारण वहां से गुजरने वाले टूरिस्टों में बहुत लोकप्रिय हुआ। लेकिन, दुर्भाग्यवश 1939 में इस ढाबे में आग लगी और सब कुछ खत्म!
उन्होंने दुबारा शुरू किया।1939 में वह नॉर्थ कैरोलिना के ऐशविले में एक मोटेल चलाने लगे। इसबार, यह एक रेस्तरां के रूप में था जिसमें 140 लोगों के बैठने की जगह थी। केंटुकी में चिकन फ्राई कर बेचने से लेकर यह रेस्तरां शुरू करने के बीच एक काम वह लगातार करते रहे। यह काम था चिकन फ्राई करने के लिए एक खास मसाले का फार्मूला विकसित करना। वह लगातार प्रयोग करते रहे। 1940 में जाकर उन्हें इसमें सफलता मिली और एक ‘सीक्रेट रेसिपी’ के रूप में फार्मूले को उन्होंने अंतिम रूप दिया। 1941 में अमेरिका के वर्ल्ड वॉर II में शामिल होने से देश में तेल की कमी हुई, टूरिज्म पर इसका सीधा असर पड़ा। आखिरकार, उन्हें अपना यह मोटल बंद कर देना पड़ा।
वर्षों पहले बेकारी की दौर में पहली पत्नी के छोड़ कर जाने के बाद इतने सालों तक हालात सुधारने की कोशिश करते हुए सारा संघर्ष उन्होंने अकेले किया। 58 साल के सैंडर्स ने दूसरी शादी 1948 में क्लॉडिया लेडिंग्टन के साथ की। ऐशविले की रेस्तरां स्थापित करने और उसे चलाने के समय क्लॉडिया उनकी सहयोगी थीं। वह एशविले रेस्तरां की मैनेजर थीं। लेकिन अब, फिर से सैंडर्स मुफलिसी में थे। रेस्तरां व्यवसाय डूब चुका था। सब कुछ फिर से खड़ा करने के पैसे नहीं थे। सब कुछ खत्म होकर उनके पास केवल 105 डॉलर का एक सोशल सिक्योरिटी चेक था जो अमेरिकी सरकार की ओर से बेरोजगार बुजुर्गों को मिलने वाला पेंशन था। यह उनके लिए अपने संपूर्ण जीवन का सबसे अधिक हताशा भरा वक्त था। यह 1952 की बात थी और लोगों की नजरों में सैंडर्स 62 साल के बुजुर्ग थे। नई नौकरी और काम पाना मुश्किल था। चार साल की शादी थी और परिवार था। हताश सैंडर्स आत्महत्या तक की सोचने लगे! … और एक दिन उन्हें लगा ‘कुछ रह गया है जिसे कर लेना चाहिए’।
सैंडर्स का रेस्तरां व्यवसाय भले ही डूब गया था लेकिन उनकी ‘सीक्रेट रेसिपी’ उनके साथ थी। ऐसे में सैंडर्स के मन में इस रेसिपी की फ्रेंजाइज देने का आइडिया जन्म लिया। अब सवाल था इसे खरीदेगा कौन? एक बूढ़े और मुफलिसी में पड़े आदमी की आइडिया में किसे दम नजर आएगा! जीवन भर आधी-अधूरी सफलता देखने और भाग्य द्वारा बार-बार नकारे जाने वाले सैंडर्स को नए कदम उठाते रहने का अभ्यास था। उनमें इतना धैर्य और हौसला जरूर बचा था कि वह नई कोशिश कर पाते। किसी तरह पैसों का जुगाड़ कर अपनी पुरानी कार से वह अमेरिका के दौरे पर निकल पड़े। वह एक के बाद एक कई होटलों के मैनेजमेंट से मिले। अपनी रेसिपी की बात समझाई। कभी अपने फ्राइड चिकन से लोगों के ‘टेस्ट बड्स’ को मुग्ध कर देने वाले इस बेहतरीन सेफ के लिए भी अपनी चमत्कारी रेसिपी पर लोगों का भरोसा जमाना आसान नहीं था। अमेरिका भर में होटलों की खाक छानते अपराजित आंट्रप्रन्योर को 1008 जगहों से ‘ना’ सुनना पड़ा और तब कहीं जाकर 1009वीं जगह किसीने ‘हां’ कहा। यूटा स्टेट के साउथ साल्ट लेक शहर में एक बड़ा रेस्तरां चलाने वाले पीट हर्मन ने इस सीक्रेट रेसिपी पर दांव खेलने का फैसला किया। रेस्तरां का सेल इस फ्राइड चिकन के कारण कई गुना बढ़ गया। इस रेसिपी का नाम ‘केंटुकी फ्राइड चिकन’ रखा गया। इसके बाद जो हुआ, वह कारोबारी दुनिया में सफलता की बेमिसाल गाथाओं में शुमार है! आज दुनिया के 118 से अधिक देशों में KFC के लगभग 20,000 से अधिक आउटलेट्स हैं। अकेले भारत में इस वक्त 350 से अधिक KFC आउटलेट्स हैं।
1980 में, 90 साल के कर्नल हार्लैंड सैंडर्स (Colonal Harland Sanders) ने केंटुकी में ही इस दुनिया को अलविदा कहा! जीवन के आखिरी महीनों तक वह एक्टिव रहे। कर्नल सैंडर्स को सफेद सूट पसंद थे। उन्हें सफेद सूट और काली स्ट्रिंग टाई में ही दफनाया गया। काले फ्रेम के चश्मे, झक्क सफेद बाल, बकरा-कट दाढ़ी (goatee) और सफेद सूट पर काली स्ट्रिंग टाई पहने कर्नल सैंडर्स की हेड शॉट फोटो KFC का ब्रांड लोगो है। ऊंचे विचारों वाली मां ने उनके दिमाग में बुरी लतों से दूर रहने, बुरी संगत से दूर रहने, ईश्वर पर भरोसा करने और ईमानदारी से मिहनत करने की बात बचपन में बहुत मजबूती से बिठाई थीं! कर्नल सैंडर्स अपनी मृत्यु से पहले ही KFC के अपने शेयर को बच्चों, महिलाओं और परिवार कल्याण के उद्देश्य से खर्च करने की व्यवस्था कर गए। आज अमेरिका और कनाडा में बच्चों और महिलाओं के लिए कई अस्पताल उनकी विरासत से चल रहे हैं।
दोस्तो, ध्यान दीजिए- कर्नल सैंडर्स की कहानी से हमने 5 बातें सीखीं-
1.हजार असफलताओं पर भी हार न मानना।
2.उन्नति की राह में उम्र केवल एक संख्या है।
3.हालात के अनुसार चलना, लेकिन ढूंढ़ते उसे रहना जिसे करना आप दिल से चाहें।
4.‘excellence’ (उत्कृष्टता) उसी काम में मिलती है जिसमें आपका मन रमता है।
5.असली सफलता अंततः समाज को जाती है।
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