प्रख्यात वैज्ञानिक मिसाइल-मैन डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम भारत की उन विभूतियों में शुमार हैंं जिनका नाम इस देश की आधुनिक प्रगति के इतिहास से कभी मिट नहीं सकता। पिछले दशक के लाखों स्कूली बच्चों को उनकी सजीव उपस्थिति को महसूस करने का सौभाग्य मिला। लाखों छात्रों ने उनके जीवन से प्रेरणा ग्रहण की। आज भी, जब वे सदेह हमारे बीच नहीं हैं तब भी, मौजूदा और आने वाली पीढ़ियों के लिए वे हमेशा प्रेरणा श्रोत बने रहेंगे।
आज 27 जुलाई को उनकी पुण्य तिथि है। 4 साल पहले आज के दिन शिलॉन्ग (मेघालय) में व्याख्यान देने के दौरान ही उन्हें दिल का दौरा पड़ा और वे वहीं डाइस पर गिर पड़े थे।
डॉ. कलाम जितने बड़े वैज्ञानिक थे उससे बड़े जीवन-शिक्षक थे। अपनी आखिरी सांसों तक भी वह अपनी इस भूमिका को निभाते रहे। हमारे लिए ऐसी मिसाल दुर्लभ है। कितने लोगों को आप जानते हैं जो आखिरी वक्त तक अपना हित और अपने परिवार के हित से ऊपर उठकर मानवता के हित के लिए काम करने वाले हों! पढ़िए डॉ एपीजे अब्दुल कलाम के जीवन का एक और मर्मस्पर्शी प्रेरक प्रसंग…
एक बार डॉ एपीजे अब्दुल कलाम एक राज्य स्तरीय इंटरकॉलेज टेक-फेस्टिवल में बतौर मुख्य अतिथि आमंत्रित किए गए। उस टेक-फेस्ट (तकनीक समारोह) के एक हिस्से के रूप में विज्ञान प्रदर्शनी थी जिसमें ऐसे सक्रिय विज्ञान मॉडल दिखाए जाने थे जो किसी वैज्ञानिक सिद्धांत पर काम करते हों और चालू हालत में हों।
इस प्रदर्शनी में कॉलेज के छात्रों द्वारा विज्ञान के कई बेहतरीन क्रियाशील मॉडल प्रदर्शित किए गए। चूंकि बतौर मुख्य अतिथि इस प्रदर्शनी का निरीक्षण डॉ एपीजे अब्दुल कलाम करने वाले थे, तो उनके आने से पूर्व समारोह के आयोजकों और प्रख्यात विज्ञान शिक्षकों ने उन मॉडलों की कड़ाई से जांच की ताकि प्रदर्शन के वक्त उनमें कोई त्रुटि न रहे।
इन्हीं मॉडलों में से एक मॉडल ऐसा था जिसे छात्रों के समूह ने साधारण खिलौने से तैयार किया था। वह एक साधारण खिलौना-बस थी जिसे बुद्धिमान छात्रों ने ध्वनि सिग्नल से चलने वाले मॉडल के रूप में बदल दिया था। वह खिलौना-बस ताली की आवाज को सेंस करती थी और उसीसे चलती थी।
ठीक प्रदर्शन वाले दिन जब सभी प्रॉजेक्ट हॉल में बने स्टॉलों पर लगाए जाने थे, उस खिलौना-बस वाले मॉडल में कोई खराबी आ गई। निरीक्षण दल ने उन छात्रों को बताया कि वह असफल प्रॉजेक्ट प्रदर्शनी में शामिल नहीं किया जा सकता। उन छात्रों से कहा गया कि वे अपना मॉडल वहां से हटा लें। लेकिन, उन्हें यह छूट मिली कि यदि वे चाहें तो वहां वॉलंटियर के रूप में रह कर प्रदर्शनी के आयोजन से जुड़े कामों में योगदान कर सकते थे।
उन्होंने अपने स्टॉल से अपना मॉडल हटा लिया और उस जगह को खाली कर दिया।
निर्धारित समय पर डॉ. कलाम का आगमन हुआ। उन्होंने एक-एक प्रॉजेक्ट को ध्यान से सुना और देखा। अपनी ओर से सलाह दिए, उनकी सराहना की और किस तरह उनमें और सुधार किया जा सकता था इस बारे में सुझाव दिए। डॉ. कलाम की बातें विज्ञान के अनुभव से भरी हुईं और सबके लिए बेहद प्रेरक और रोमांचकारी थीं। हर कोई मुग्ध भाव से उन्हें सुन रहा था। जब उन्होंने सारे स्टॉल का निरीक्षण कर लिया और चलने को हुए तो उनकी नजर उस 3 फीट की जगह वाले खाली स्टॉल पर पड़ गई। फिर उन्होंने पूछ ही दिया कि वह स्टॉल खाली क्यों था।
सीनियर प्रोफेसर ने उन्हें बताया कि वह स्थान जिन छात्रों को अलॉट किया गया था उनका प्रॉजेक्ट कामयाब नहीं रहा और इसलिए उसे वहां से हटा दिया गया है। उन्होंने मुख्य अतिथि से खेद प्रकट किया। लेकिन जिज्ञासु डॉ. कलाम ने तपाक से यह कहकर सबको हैरानी में डाल दिया कि क्या वे उस प्रॉजेक्ट के छात्रों से मिल सकते हैं क्योंकि उन्हें वह असफल प्रॉजेक्ट देखना है।
वहां मौजूद सभी प्रोफेसर और छात्र इतने विह्वल हुए कि उनकी तालियों की गूंज तब तक सुनी जाती रही, जब तक उनके हाथ दुख न गए! उतनी बड़ी हस्ती की वैसी सहजता, सरलता और विज्ञान के प्रति जिज्ञासा के उस अविस्मरणीय क्षण ने सबको बेहद भावुक बना दिया था!
डॉ एपीजे अब्दुल कलाम के जीवन से जुड़ा यह प्रसंग मुझे Quora.com में कोई उत्तर तलाशते हुए मिला था। शर्मिष्ठा दास द्वारा उल्लेखित यह प्रसंग अंग्रेजी में था।
Sumit
अद्भुत अनोखे कलाम