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भारत के प्राचीन सूर्य मंदिर- 12 ancient Sun temples.

इस आलेख – ‘भारत के प्राचीन सूर्य मंदिर- 12 ancient Sun temples’ में हमने देश के 12 महत्वपूर्ण प्राचीन सूर्य मंदिरों को लिया है। प्राचीन सूर्य मंदिरों के साक्ष्य देश के विभिन्न भागों से मिले हैं। हमारी धरती पर सूर्य सभी प्राकृतिक शक्तियों का केंद्र है। मनुष्य के लिए सूर्य एकमात्र जीवित देवता और पृथ्वी पर ऊर्जा का मूल स्रोत है! संपूर्ण पृथ्वी पर मानव सहित समस्त जीव-जंतुओं और वनस्पतियों का जीवन सूर्य की ऊर्जा पर ही आधारित है। समस्त संसार की गतिविधियां सूर्य की ऊर्जा से चलती है। स्वयं पृथ्वी सूर्य से ही टूटकर निर्मित हुई!

जीवन के लिए सूर्य की महत्ता से हमारे पूर्वज भली-भांति परिचित थे। तभी तो दुनिया की प्राचीन सभ्यताओं में किसी न किसी रूप में सूर्य को पूजने का चलन था। भारत में सूर्य को ऋगवैदिक काल से ही एक प्रमुख देवता के रूप में स्थान प्राप्त होने के प्रमाण हैं। आगे चलकर, देश के विभिन्न भागों में सूर्य को देवता के रूप में मंदिरों में भी पूजने का चलन शुरू हुआ।

भारत के प्राचीन सूर्य मंदिर – 12 प्रमुख सूर्य मंदिर

भारत के विभिन्न राज्यों में ऐसे अनेक प्राचीन सूर्य मंदिरोंं के साक्ष्य मौजूद हैं जहां कभी या आज भी सूर्य की पूजा की जाती है। आइए, जानते हैं भारत में सूर्य की आराधना के 12 प्रमुख प्राचीन स्थलों के बारे में-         

भारत के प्रमुख सूर्य मंदिर (12 प्राचीन सूर्य मंदिर)

कोणार्क

1. प्राचीन सूर्य मंदिर : कोणार्क, उड़ीसा

‘अर्क’ शब्द सूर्य का पर्याय है। इस प्रकार ‘कोणार्क’ का अर्थ हुआ कोण पर सूर्य। कोणार्क का प्राचीन सूर्य मंदिर भारत का सबसे बड़ा और भव्य सूर्य मंदिर है। इस मंदिर का निर्माण उड़ीसा के गंग शासक नरसिंह देव ने 13वीं शताब्दी में करवाया था। यह मंदिर उड़ीसा के नागर शैली में बने मंदिरों में अद्वितीय है। कोणार्क जगन्नाथ पुरी से लगभग 35 किमी और उड़ीसा की राजधानी भुवनेश्वर से 66 किमी की दूरी पर है। सूर्य देवता के विशाल रथ के स्वरूप में निर्मित इस मंदिर को पत्थर के 7 घोड़े खींचते से प्रतीत होते हैं। मंदिर के आधार भाग में सूरज के रथ के समान 24 विशाल अलंकृत पहिए बने हैं जिनमें से प्रत्येक का व्यास 12 फीट है। 1984 से यह मंदिर विश्व विरासत सूची में शामिल है। कोणार्क सूर्य मंदिर आज केवल पुरातात्विक धरोहर है। यहां पूजा नहीं की जाती है।   

मार्तंड मंदिर के भग्नावशेष

2. अनंतनाग का मार्तंड मंदिर, जम्मू-कश्मीर

सूर्य का एक नाम ‘मार्तंड’ भी है। मार्तंड मंदिर जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग से तकरीबन 8 किमी की दूरी पर है। इस मंदिर का आज केवल भग्नावशेष बाकी है। पुरतत्ववेत्ताओं का मानना है यह मंदिर गांधार, गुप्त, ग्रीक, चीनी, रोमन, सीरियाई स्थापत्य शैली का एक अद्वितीय सुंदर नमूना था। इस मंदिर का निर्माण कश्मीर के कर्कोटवंशी शासक महाराज ललितादित्य मुक्तापीड़ ने 8वीं शताब्दी में करवाया था। 700 साल बाद 15वीं सदी में कश्मीर के कट्टर मुस्लिम शासक सिकंदर बुतशिकन ने इस अनोखे मंदिर को ध्वस्त किया।

कटारमल, सूर्यमंदिर, उत्तराखंड

3. कटारमल सूर्य मंदिर, उत्तराखंड

मध्य हिमालय में बसा कटारमल सूर्य मंदिर उत्तराखंड के अल्मोरा जिला मुख्यालय से लगभग 17 किमी और कोशी बाजार से 5 किमी की दूरी पर स्थित है। मंदिर की ऊंचाई समुद्र तल से 2100 मीटर से भी अधिक है। नैनीताल से यहां की दूरी लगभग 78 किमी है। मंदिर का निर्माण उत्तराखंड के कुमाऊं हिमालय में 9वीं से 12वीं शताब्दी के बीच शासन करने वाले कत्यूरी राजवंश के शासक कटारमल्ल ने कराया था। पत्थर के बड़े-बड़े वजनी खंडों से निर्मित यह मंदिर उत्तराखंड के कत्यूरी शासन काल के स्थापत्य का एक प्रतिनिधि उदाहरण है।

मोढेरा सूर्यमंदिर, गुजरात

4. मोढेरा का सूर्य मंदिर, गुजरात

यह मंदिर गुजरात के मेहसाणा जिले में मेहसाणा से लगभग 25 किमी और राजधानी अहमदाबाद से लगभग 100 दूर मोढेरा गांव में स्थित है। इस मंदिर का निर्माण 11वीं शताबदी में, यानी आज से लगभग हजार साल पहले चालुक्य राजा भीम प्रथम ने करवाया था। आज इसमें कोई पूजा नहीं होती और यह मंदिर पुरातत्व का धरोहर बनकर रह गया है।

नवलखा सूर्यमंदिर, गुजरात

5. घुमली का नवलखा मंदिर, गुजरात

यह मंदिर पश्चिमी गुजरात में पोरबंदर से लगभग 45 किमी दूर घुमली गांव में स्थित है। लगभग हजार वर्ष पुराने इस मंदिर का निर्माण 11वीं शताब्दी में सूर्यवंशी राजपूतों की एक शाखा जेठवा वंश के किसी राजा ने करवाया था। यह मंदिर सोलंकी और गुजराती-मौर्य शैली में निर्मित है। मंदिर का निर्माण नौ लाख की लागत से हुआ था इसलिए इसका यह नाम पड़ा।

6. गया का दक्षिणार्क मंदिर, बिहार

यह मंदिर बिहार की राजधानी पटना से लगभग 98 किमी दूर प्राचीन शहर गया में स्थित है। माना जाता है मंदिर का निर्माण 13वीं शताब्दी में आंध्र प्रदेश के वारंगल के दक्षिण भारती राजा प्रतापरुद्र ने करवाया था। मंदिर के पास सूर्य कुंड और दक्षिण मानस तीर्थ कुंड नामक दो बड़े तालाब हैं जहां छठ के अवसर पर सूर्य की आराधना हेतु बड़ी संख्या में श्रद्धालु जुटते हैं।

देव सूर्यमंदिर, औरंगाबाद

7. औरंगाबाद का देवार्क सूर्य मंदिर, बिहार

यह मंदिर बिहार के औरंगाबाद जिले में देव नामक स्थान पर है। राजधानी पटना से इसकी दूरी लगभग 150 किमी है। मंदिर का स्थापत्य उड़ीसा के नागर शैली के समान है। मंदिर के इतिहास से जुड़ा कोई स्पष्ट प्रमाण अब तक नहीं मिल पाया है। स्थापत्य की शैलीगत विशेषताओं के आधार पर पुरातत्ववेताओं का अनुमान है कि इसका निर्माण 9वीं शताब्दी में हुआ होगा। किंवदंती है कि हजारों साल पहले इस मंदिर का निर्माण स्वयं विश्वकर्मा ने अपने हाथों से केवल एक रात में कर दिया था। रविवार के दिन यहां विशेष पूजा होती है। छठ पूजा के अवसर पर यहां श्रद्धालुओं की भारी भीड़ लगती है।

8. सूर्य पहाड़, असम

पहाड़ी स्थल में अवस्थित सूर्य पहाड़ नामक यह 9वीं-10वीं शताब्दी का प्राचीन स्थल असम के बोगाईगांव के पास ग्वालपाड़ा से 12 किमी और असम की राजधानी गुवाहाटी से 132 किमी की दूरी पर है। पुरातात्विक साक्ष्यों और पौराणिक विवरणों से यहां सूर्य मंदिर होने की पुष्टि होती है। यहां से एक विशाल आकार के पत्थर का गोलाकार स्लैब प्राप्त हुआ है जिस पर आदित्य की 12 प्रतिमाएं निर्मित हैं। पौराणिक मान्यता के अनुसार आदित्य की उत्पत्ति माता अदिति और पिता ऋषि काश्यप से हुई थी। आदित्य को सूर्य का पर्याय भी और सूर्य का पिता भी माना जाता है। वर्तमान में यहां शैव और जैन मंदिर हैं। इस स्थल के बौद्ध धर्म से भी जुड़े होने के भी प्रमाण हैं।

उनाव-सूर्यमंदिर-म.प्र.

9. उनाव का सूर्य मंदिर, मध्य प्रदेश

यह मंदिर मध्य प्रदेश के दतिया जिले में स्थित है। इसे उनाव-बालाजी सूर्य मंदिर या भ्रमण्यदेव सूर्य मंदिर भी कहा जाता है। यह स्थान मध्य प्रदेश के दतिया से 17 किमी और सीमावर्ती उत्तरप्रदेश के झांसी से भी लगभग इतनी ही दूरी पर स्थित है। परंपरा के अनुसार इस मंदिर का मुख्य पुजारी कोई ब्राह्मण नहीं बल्कि काछी जाति का व्यक्ति होता है। माना जाता है पास की पाहूज नदी में नहाकर यहां सूर्य की आराधना करने से चर्मरोगों से छुटकारा मिलती है। रविवार के दिन यहां विशेष पूजा होती है। स्थानीय मान्यताओं के अनुसार इस मंदिर का निर्माण हजारों साल पहले राजा मरूच ने करवाया था।

सूर्यनारायण, अरसावल्ली, आंध्र

10. अरसावल्ली का सूर्यनारायण मंदिर, आंध्रप्रदेश

यह मंदिर आंध्र प्रदेश के श्रीकाकुलम में स्थिति है। मंदिर का निर्माण 7वीं शताब्दी में कलिंग वंश के राजा देवेंद्र वर्मा के शासनकाल में, यानी आज से लगभग चौदह सौ साल पहले हुआ था। मंदिर में हर साल रथसप्तमी नामक त्योहार मनाया जाता है। यह मंदिर उड़ीसा शैली में निर्मित है और माना जाता है इसे उड़ीसा के विश्वकर्मा ब्राह्मण शिल्पियों ने तैयार किया था।   

सूर्यनार कोविल, कुंभकोणम, तमिलनाडु

11. कुंभकोणम का सूर्यनार मंदिर, तमिलनाडु

तमिल में सूर्यनार कोविल कहा जाने वाला यह सूर्य मंदिर तमिलनाडु के कुंभकोणम से 15 किमी और तंजावुर से 55 किमी की दूरी पर स्थित है। मंदिर का निर्माण 11वीं शताब्दी यानी आज से लगभग नौ सौ साल पहले चोल राजा कुलोतुंग प्रथम ने करवया था। दक्षिण भारतीय द्रवि‌ड़ शैली में निर्मित यह मंदिर तमिलनाडु के 9 नवग्रह मंदिरों में से एक है।

ओसियां सूर्यमंदिर, राज.

12. ओसियां का सूर्य मंदिर, राजस्थान

यह मंदिर जोधपुर-बीकानेर राजमार्ग पर जोधपुर से लगभग 70 किमी की दूरी पर है। आठवीं से 11वीं शताब्दी के बीच यहां गुर्जर-प्रतिहारों का शासन था। इन गुर्जर-प्रतिहार राजाओं ने यहां कई बेहद खूबसूरत वैष्णव और जैन मंदिरों का निर्माण कराया। इन्हीं में एक सूर्य मंदिर है। मंदिर में अब कोई सूर्य प्रतिमा नहीं है। मंदिरों से मिली कुछ मूर्तियों को देखने से उनके कुषाणकालीन होने का अनुमान लगाया जाता है।

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