सचमुच, क्या एल्युमिनियम के बर्तन हानिकारक हैं स्वास्थ्य के लिए?
सवाल है, मानव शरीर के अंदर एल्युमिनियम आया कहां से? इसका सबसे बड़ा जवाब है- हमारे रसोई के खाना पकाने और खाने के एल्युमिनियम के बर्तनों से। जी हां, इस तरह एल्युमिनियम के बर्तन नुकसानदेह हैं हमारे स्वास्थ्य के लिए!
एल्युमिनियम एक हल्का, सस्ता और टिकाऊ धातु है। पृथ्वी की सतह (धरातल) में पाए जाने वाले तत्वों की मात्रा के हिसाब से एल्युमिनियम का स्थान ऑक्सीजन और सिलिकन के बाद तीसरा है। धरती पर एल्युमिनियम लोहे से भी अधिक प्रचुर मात्रा में मौजूद है। लगभग सौ साल से कुछ अधिक हुए जब एल्युमिनियम से पहली बार रसोई के बरतन बनाए गए। इसके बाद बर्तन उद्योग में एल्युमिनियम इस कदर छाया कि आज दुनिया भर में बिकने वाले आधे से अधिक बरतन एल्युमिनियम या उसकी मिश्र धातुओं के बने होते हैं। पारंपरिक रूप से हमारे रसोई घरों में पहले मिट्टी, पीतल या लोहे के बरतनों के खाना पकाया जाता था। अब खाना पकाने के लिए ज्यादातर एल्युमिनियम के बरतनों जैसे कि कड़ाही, देगची और प्रेशर कुकर इस्तेमाल होते हैं।
एल्युमिनियम ने जिस तेजी से मिट्टी, पीतल और लोहे के बर्तनों का स्थान लिया उसकी वजह थी इसका हलका, सस्ता, टिकाऊ और ताप का बेहतरीन सुचालक होना। धीरे-धीरे खाना खाने तक के बरतन, क्रॉकरी आदि भी एल्युमिनियम के बनने लगे। जब रेडिमेड रुझान वाली जिंदगी में खाना पैक कराने फिर उसे कहीं और ले जाकर खाने की प्रवृत्ति चली तो खाने की पैकिंग और उसे लपेटने के लिए एल्युमिनियम के पैकेट्स और फॉइल्स भी धड़ल्ले से इस्तेमाल होने लगे।
हालांकि शरीर में एल्युमिनियम की मात्रा कुछ और भी स्रोतों से प्रवेश कर सकती हैं जैसे कि शहरों की पेयजल व्यवस्था (जिसमें एल्युमिनियम के एक कंपाउंड फिटकरी [एलम] इस्तेमाल किया जाता है), लेकिन आधुनिक रसोई के बरतन इसका सबसे बड़ा और प्रमुख स्रोत है।
एल्युमिनियम न केवल हमारे स्वास्थ्य और शरीर के लिए एक अनावश्यक पदार्थ है बल्कि जहरीला और घातक भी। शरीर के अनेक घातक रोगों में एल्युमिनियम की मौजूदगी की तरफ अब दुनिया भर के चिकित्सा वैज्ञानिकों का ध्यान जा रहा है। मानव मस्तिष्क से जुड़ा अल्झाइमर्स रोग, किडनी खराब होना, याददाश्त में कमी, त्वचा पर खुजली, सिर के डैंड्रफ आदि समस्याओं में एल्युमिनियम की भूमिका स्पष्ट हो रही है।
एल्युमिनियम के बर्तन से भोजन में एल्युमिनियम का रिसाव दो कारणों से होता है। पहला, प्रेशर कुकर, कड़ाही, देगची आदि में खाना पकाते वक्त जब पक रहे खाद्य पदार्थों को धातु की कलछी या चमचे से चलाया जाता है तो बर्तन का एल्युमिनियम घिसकर खाद्य पदार्थ के साथ मिल जाता है। दूसरा, बर्तन में पक रहे खाद्य पदार्थ, खास कर अम्लीय (खट्टे) वस्तुएं, जैसे टमाटर, कढ़ी आदि ऊंचे तापमान पर एल्युमिनियम से रिएक्ट करते हैं और एल्युमिनियम रासायनिक कंपाउंड के रूप में खाद्य पदार्थों में समा जाता है।
कहीं एल्युमिनियम बर्तन हमारे लिए ‘साइलेंट किलर’ तो नहीं?
भोजन में इस तरह घुला हुआ एल्युमिनियम हमारे पेट में पहुंचकर रक्त के जरिए शरीर के विभिन्न अंगों तक पहुंच जाता है। एल्युमिनियम की मात्रा यदि थोड़ी हो और वह खाने के जरिए कभी-कभार शरीर में पहुंचे तो किडनी उसे छानकर शरीर से बाहर निकाल देता है। लेकिन, मात्रा अधिक हो और वह लंबे समय तक लगातार शरीर में जाता रहे तो उसे छानकर बाहर निकालना किडनी के वश में नहीं रह जाता। ऐसा होने पर एल्युमिनियम शरीर के विभिन्न अंगों में जमा होने लगता है। मस्तिष्क, किडनी, लिवर और हड्डियों सहित शरीर के अन्य अंगों की कोशिकाओं में इसका संचय होता है। सबसे बड़ा खतरा मस्तिष्क और किडनी को होता है। एल्युमिनियम को शरीर से बाहर निकालने वाली किडनी स्वयं इसका शिकार हो जाती हैं।
शरीर में संचित एल्युमिनियम के कारण होने वाले प्रमुख समस्याएं हैं- अल्झाइमर्स, किडनी फेल्योर, लिवर समस्या, पेट की गड़बड़ी, हड्डियों का कमजोर होना, कमजोर याददाश्त, त्वचा पर खुजली, सिर में डैंड्रफ (खुश्की) आदि। जाहिर है, शिशु और बच्चों के ऊपर एल्युमिनियम का असर अधिक घातक होगा। उनकी याददाश्त और शारीरिक वृद्धि, हड्डियों की मजबूती, लिवर, किडनी आदि पर एक वयस्क की तुलना में अधिक घातक प्रभाव पड़ेगा।
ऐसा नहीं है कि रसोई में एल्युमिनियम के बरतन अनिवार्य हैं या उनका कोई व्यावहारिक विकल्प नहीं है। जरा सोचिए, हमारे रसोई घरों में एल्युमिनियम का प्रवेश केवल सौ साल पुराना है। इससे पहले क्या हम बरतनों का इस्तेमाल नहीं करते थे? दरअसल मिट्टी, पीतल-तांबे और लोहे के बरतनों का इस्तेमाल हमारी रसोई में सैकड़ों साल से होता चला आ रहा है। मिट्टी के बरतन सबसे निरापद माने गए हैं। लेकिन आधुनिक रसोई में आप सब कुछ मिट्टी के बरतनों से नहीं कर सकते। इसलिए पीतल-तांबे, लोहे, कांच, चीनी-मिट्टी आदि के बरतनों का इस्तेमाल कीजिए। स्टेनलेस स्टील तो है ही। खाना पकाने के लिए कड़ाही, देगची, फ्राई पैन आदि लोहे या पीतल का इस्तेमाल कीजिए।
रही बात प्रेशर कुकर की, तो आज बाजार में स्टेन लेस स्टील और एल्युमिनियम के एनोडाइज्ड प्रेशर कुकर उपलब्ध हैं जो सावधानी से इस्तेमाल करने पर साधारण एल्युमिनियम के प्रेशर कुकर की तुलना में बहुत कम नुकसानदेह होते हैं। आपने काले रंग के चमकीले प्रेशर कुकर देखे होंगे। ये एनोडाइज्ड प्रेशर कुकर हैं। इनके इस्तेमाल में सावधानी यह रखें कि इनमें खाद्यपदार्थों को चलाने के लिए लकड़ी की कलछी या चमचे का ही इस्तेमाल करें। स्टील या अन्य धातु की कलछी बरतन की परत को खुरच कर आपके खाने में एल्युमिनियम पहुंचाने का कारण बनेंगी। एनोडाइज्ड प्रेशर कुकर को मांजने में भी केवल मुलायम स्पंज का इस्तेमाल करें, ताकि खाने के संपर्क में रहने वाली बरतन की आंतरिक परत की सतह खुरचने के कारण क्षतिग्रस्त न हो।
स्वस्थ्य और दीर्घायु होना हर मनुष्य का अधिकार भी है और कर्तव्य भी। आज असुरक्षित औद्योगिकीकरण, रसायनों के लापरवाह इस्तेमाल और विवेकहीन सुविधावाद ने प्रकृति के हर अंग को नुकसान पहुंचाया है। पृथ्वी का शायद ही कोई हिस्सा हो जहां जीवन के आधार मिट्टी, जल, हवा, पानी और भोजन दूषित होने से बच रहा हो। ऐसे में हमें अपनी ओर से भरसक कोशिश करनी चाहिए कि स्वास्थ्य को हानि पहुंचाने वाले तत्वों को हम अपने जीवन से निकाल बाहर करें। एल्युमिनियम के बरतन ऐसा ही एक तत्व है जिसे कम से कम से हम अपनी रसोई से तो बाहर निकाल ही सकते हैं!
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Rekha Sahay
एलुमुनियम के हानिकारक प्रभावों के बारे में हाल ही में मैंने कहीं पढ़ा है .आपका post भी इस संदर्भ में बहुतउपयोगीहै.
आप का फलसफ़ा भी मुझे बहुत अच्छा लगा .आपका blog बहुतअच्छा है.ऐसे ही लिखते रहिए.
admin
शुक्रिया रेखा जी!